छात्रों को सुन्दर, सुडोल तथा आकर्षण लेखन सिखाने के लिए निम्नलिखित तीन विधियों का प्रयोग किया जाता है –
- सुलेख
- अनुलेख
- श्रुतिलेख
सुलेख
सुलेख दो शब्दों से मिलकर बना है ‘सु + लेख’
सुलेख का अर्थ होता है – ‘सुन्दर लेख’
इसका तात्पर्य यह है की अच्छे ढंग से लिखी गई लिखावट भली प्रकार से पढ़ी जा सके तथा जिसको ठीक प्रकार से समझा भी जा सके। क्योकि सुन्दर लेख में आकर्षण, कला और एक संगठन होता है।
गांधी के अनुसार, “सुन्दर लेख के बिना शिक्षा अपूर्ण है।”
अनुलेख
अनुलेख का अर्थ होता है – ‘किसी लिखे हुए लेख का अनुशरण करके पुनः वही शब्द लिखना’
अर्थात जब अध्यापक बोल – बोल कर श्यामपट्ट पर लिखता जाता है। तब पीछे – पीछे बालक भी उसी गति से सुनते हुए लिखते जाते हैं।
इस प्रकार बालक के द्वारा लिखी गई सामाग्री लेख और लेखन की दृष्टि से बालक को समुचित अभ्यास परिचय देती है।
अर्थात गति के साथ – साथ लिखना अनुलेखन कहलाता है।
श्रुतिलेख
श्रुतिलेख का अर्थ होता है – ‘सुनकर लिखना’
इस प्रकार की विधि में अध्यापक बोलता जाता है तथा छात्र तेज गति से लिखते जाते हैं।
अर्थात श्रुतिलेख का प्रारम्भ लगभग तीसरी कक्षा से होना चाहिए। आधुनिक युग में श्रुतिलेख टेपरिकार्डर आदि नाना प्रकार के श्रव्य साधनों के माध्यम से बच्चों को सिखाया जाता है।
अतः इस प्रकार बच्चा अपनी आँख, कान और हाथ इन तीनों इन्द्रियों को सक्रिय रखता है।
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