लेखन के द्वारा ही बालक अपने भावों अथवा विचारों को प्रकट करता है। अतः भाषा की ध्वनियों को लिपिबद्ध करना ही लेखन कहलाता है।
विद्वानों ने लेखन की निम्नलिखित विधियों का उल्लेख किया है। जिसके माध्यम से किसी भी विचार को को सही ढंग से लिखित रूप में प्रदान किया जा सकता है।
- खण्डशः रेखालेखन विधि
- मान्टेशरी विधि
- जैटकॉक विधि
- पेस्टालॉजी विधि
- अनुकरण विधि
- स्वतन्त्र लेखन विधि
खण्डशः रेखालेखन विधि
इस विधि में बालक को अक्षर ज्ञान के लिए वर्णों को तोड़ तोड़ कर लिखना सिखाया जाता है। अर्थात बालक को सबसे पहले वर्ण का आधा भाग फिर पूरा वर्ण लिखना सिखाया जाता है। इससे बालक आसानी से पूर्ण अक्षर लिखना सीख लेता है।
मान्टेशरी विधि
मारिया मान्टेशरी इस विधि की प्रेणता हैं। इनके अनुसार बालक को लिखना सिखाने में आँख, कान और हाथ तीनों के प्रयोग पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
इस विधि में बालक को सबसे पहले लकड़ी अथवा गत्ते के बने अक्षरों पर उसके आकृति के अनुसार अंगुली घुमाने को कहा जाता है। और बालक जब इसमें प्रवीण हो जाता है। तो उन्ही अक्षरों पर उससे रंगीन पेन्सिल घुमाने को कहा जाता है।
अतः इस प्रकार बालक उन अक्षरों को पहचानने तथा लिखने में समर्थ हो जाता है।
जैटकॉक विधि
इस विधि में बालक को सबसे पहले पढ़ना सिखाया जाता है। तत्पश्चात उसी अक्षर को लिखने के लिए कहा जाता है। और जब बालक पूरा वाक्य लिख लेता है तो एक बार पुनः वही वाक्य स्मरण के आधार पर बालक को लिखने के लिए कहा जाता है। अतः बालक अशुद्धि का सुधार स्वयं करता है।
पेस्टालॉजी विधि
इस विधि के अनुसार बालक को सबसे पहले लिखना सिखाया जाता है।
इसमें अक्षरों को छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाता है। तथा पुनः उसका सही योग करके पूर्ण अक्षर का ज्ञान कराया जाता है।
अनुकरण विधि
इस विधि में शिक्षक श्यामपट्ट पर आगे लिख देता है। तो छात्र भी लेख का अनुकरण करके सही प्रकार लिखने का पूरा प्रयास करते हैं।
स्वतन्त्र लेखन विधि
इस विधि में बिना वर्ण देखे या बिना नक़ल किये बालक से उसकी मानसिक चित्र छाया के अनुसार लिखवाया जाता है। कुशाग्रबुद्धि बालक इसे बहुत कम समय में सीख लेते हैं।
लेखन सिखाने में ध्यान देने योग्य बातें
बालकों को लेखन सिखाने में शिक्षक को हमेशा निम्न बातों को ध्यान देना चाहिए –
- बैठने का ढंग
- आँखों से कागज़ की दूरी
- कलम पकड़ने की विधि
- शिरोरेखा
बैठने का ढंग
लिखते समय बालकों को बैठने का उचित ढंग होना चाहिए जिससे रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। झुककर लिखने की आदत न डाली जाए और कुर्सी पर बैठते समय बालक के पैर सीधे जमीन पर रहे।
आँखों से कागज़ की दूरी
लेखन की कॉपी से आँखों के बीच की दूरी लगभग 30 – 35 सेमी० की दूरी होनी चाहिए। जिससे बच्चे की आँख पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।
कलम पकड़ने की विधि
कलम पकड़ने का ढंग ठीक होना चाहिए। अतः कलम को अंगूठे व मध्य अंगुली के बीच रखकर तर्जनी से पकड़ना चाहिए और कलम को प्वाइंट से एक इंच ऊपर पकड़ना चाहिए। इसके साथ ही कलम इस प्रकार पकड़ी जाए की अंगुलियों को वर्णों के आकार के अनुसार घुमाया – फिराया जा सके।
शिरोरेखा
वर्णों के ऊपर लगाई जाने वाली रेखा को शिरोरेखा कहते हैं। शिरोरेखा अक्षर का आवश्यक अंग है। शिरोरेखा लगाने के बाद ही वर्ण पर मात्रा लगानी चाहिए।
हिन्दी व्याकरण
सुलेख, अनुलेख तथा श्रुतिलेख का क्या अर्थ होता है?