मलेरिया रोग
मलेरिया रोग का पता Indian Medical Service के डॉक्टर रोनाल्ड रास महोदय ने लगाया था।उन्होने पता लगाया कि एनोफिंलीज़ जाति की मादा मच्छर इस रोग को फैलाती है।
इस मच्छर का जन्म गंदे पानी के तालाबों, नाली – नालों तथा गड्ढों मे होता है।यह मच्छर सभी पंख वाले कीड़ों की भाँति विकास की चार अवस्थाओं से होकर गुजरता है जो नीचे दिये गए हैं –
- अंडा
- लार्वा
- प्यूपा
- वयस्क मच्छर
प्रथम अवस्था मे वह पानी के अंदर रहता है।द्वितीय और तृतीय अवस्था मे उसको साँस लेने के लिए पानी के ऊपरी सतह पर आना पड़ता है।तथा चतुर्थ अवस्था मे वह पूरा मच्छर बनकर पानी से उड़ जाता है।
इस मच्छर जाति को मारने के लिए या उसकी बृद्धि को रोकने के लिए पानी के ऊपर कीड़े मारने की दवाई छिड़कनी चाहिए।तथा गंदे पानी के गड्ढो को मिट्टी से भरवा देना चाहिए।
मलेरिया रोग के लक्षण
मलेरिया रोग का मुख्य लक्षण बुखार है जो बार – बार उतरता – चढ़ता रहता है।इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को ज़्यादातर तीसरे दिन बुखार आता है।इसलिए इसे ‘बारी का बुखार’ भी कहते हैं।
बुखार चढ़ते समय रोगी को ठण्ड लगती है, रोगी काँपता है, रोगी का जी मचलता है तथा रोगी का सिर भी भारी पड़ जाता है।जब रोगी का बुखार उतरता है तो रोगी को पसीना आता है।
मलेरिया से रोगी का प्लीहा बढ़ जाता है, जिसका तुरन्त उपचार करना चाहिए|
मलेरिया रोग से बचने के उपाय
मलेरिया रोग से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय नीचे दिये गए हैं –
- रोगी के खून का जाँच कराना चाहिए जिससे की पता चल सके कि रोगी मलेरिया से पीड़ित है या किसी अन्य रोग से पीड़ित है|
- डॉक्टर जाँच के उपरान्त उपयुक्त दवाई खिलायेगा।हमे बिना डॉक्टर के परामर्श के कोई भी दवा नहीं लेनी चाहिए|
- जब तक रोगी को रोग से पूर्ण रूप से छुटकारा न मिल जाय, रोगी को विश्राम करना चाहिए|
- हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए।