बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम अनुच्छेद 21 (क) में वर्णित है।
2002 से पहले यह अनुच्छेद 45 में (राज्य के नीति निदेशक तत्व में) 6 से 14 वर्ष तक के सभी बालकों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध राज्य का कर्तव्य था।
भारत के 86 वें संविधान संशोधन के द्वारा 2002 को इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत शिक्षा का मौलिक अधिकार बना दिया गया। जिसमें 6 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है।
संसद में 4 अगस्त 2009 को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा 1 से 8 तक को इनका मौलिक अधिकार बना दिया गया।
यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बालक को गुणवत्ता पूर्ण प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो और इसे राज्य परिवार समुदाय की सहायता से पूर्ण किया जा सकता है।
इससे सम्बंधित कुछ प्रावधानों का वर्णन निम्नलिखित है –
- अनुदान प्राप्त एवं निजी विद्यालयों से 25% सीट निर्बल समुदाय के लिए आरक्षित होगा जिसका वहन सरकार करेगी।
- पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बालकों की झिझक दूर करें तथा व्यावहारिक जीवन में सफलता प्राप्त करने हेतु सहायक हो।
- पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए जो अनेक दैनिक जीवन से सम्बन्ध रखते हों।
बाल अधिकार
बालकों का सर्वांगीण विकास ही देश के विकास की रुपरेखा तैयार करता है। बालकों की शिक्षा इनके विकास की आधारशिला होती है इसलिए शिक्षा प्रत्येक बालक का जन्म सिद्ध अधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 20 नवम्बर 1989 को बाल अधिकार की घोषणा की गई।
जिसे भारत सरकार द्वारा 11 दिसम्बर 1992 में अंगीकृत किया गया। जिसके मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –
- बच्चों के माता – पिता की इच्छा के विरुद्ध अलग न करना।
- बच्चों को नशीले पदार्थों के प्रयोग करने से रोकना।
- बच्चों के क्रय – विक्रय एवं व्यापार को रोकने के लिए राष्ट्र द्वारा कानून बनाना।
- लैंगिग शोषण से बचाना।
- बच्चों के जन्म के तुरन्त बाद पंजीकरण और राष्ट्रीयता प्राप्त करने का अधिकार। आदि।
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