1944 ई० में इंग्लैण्ड में वटलर शिक्षा आयोग के समकालीन भारत में केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड में जान सार्जेन्ट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जिसकी रिपोर्ट को सार्जेन्ट योजना के नाम से जाना जाता है।
पूर्व प्राथमिक शिक्षा के सन्दर्भ में सार्जेन्ट के सुझाव
पूर्व प्राथमिक का पाठ्यक्रम 3 से 6 वर्ष रखा जाए पूर्व प्राथमिक की शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए किन्तु अनिवार्य नहीं किया जा सकता।
शिशु शालाओं में विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापिकाओं की नियुक्ति की जाए।
प्राथमिक शिक्षा को लेकर सार्जेन्ट के सुझाव
6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को शिक्षा निःशुल्क व अनिवार्य दी जाए।
शिक्षा की प्रकृति बेसिक शिक्षा पद्धति पर आधारित हो।
समस्त कार्यक्रमों के लागू होने में लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
सार्जेन्ट योजना और हाईस्कूल शिक्षा
हाईस्कूल शिक्षा का पाठ्यक्रम 6 वर्ष का निर्धारित किया जाए तथा प्रवेश 11 वर्ष की आयु में दिया जाए।
11 से 17 वर्ष के आयु वर्ग में से प्रत्येक 5 बच्चे पर केवल एक को प्रवेश दिया जाए।
सार्जेन्ट योजना और विश्वविद्यालय शिक्षा
वर्तमान विश्वविद्यालयी शिक्षा राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती इसलिए प्रवेश के नियम को और कठोर किया जाए।
विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम की अवधि 3 वर्ष की रखी जाए।
विश्वविद्यालयों में अध्यापक प्रशिक्षण को निःशुल्क किया जाए।
सार्जेन्ट योजना और व्यवसायिक शिक्षा
व्यवसायिक शिक्षा के लिए एबट, वुड रिपोर्ट को प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाए।
व्यवसायिक शिक्षा के दौरान छात्रों को भत्ता भी प्रदान किया जाए।
युद्ध के उपरान्त तकनीकि आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 10 करोड़ वार्षिक रुपये तकनीकि शिक्षा पर व्यय किये जाए।
सार्जेन्ट योजना तथा प्रौढ़ शिक्षा
सार्जेन्ट योजना के अनुसार साक्षरता एक साधन है समाधान नहीं इस बात पर बल दिया जाए।
प्रौढ़ शिक्षा के अन्तर्गत अध्यापकों की अलग से नियुक्ति की जाए।
प्रौढ़ शिक्षा पर 3 करोड़ रुपये वार्षिक व्यय किये जाए।
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