राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 स्वतन्त्र भारत की प्रथम शिक्षा नीति थी। कोठारी आयोग 1964 के सुझावों को प्रभावशाली रूप से लागू करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 को क्रियान्वित किया गया।
इसमें 17 – सिद्धांत थे जो निम्नलिखित हैं –
- 1968 की नीति में अनुच्छेद 45 को लागू करने का प्रावधान किया।
- 1968 की नीति ने अध्यापकों का स्तर, वेतन तथा शिक्षा संतोषजनक निर्धारित करने के सुझाव दिये।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 त्रि – भाषा सूत्र लागू करने की संस्तुति की।
- शिक्षा में अवसरों के सामान्यीकरण पर बल दिया गया।
- सभी स्तरों पर प्रतिभावों को खोजने का प्रयास किया गया।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में कार्य अनुभव तथा राष्ट्रीय सेवा को बढ़ावा देने का उल्लेख किया गया।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में विज्ञान तथा अनुसंधान शिक्षा को प्राथमिकता दी गयी।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में कृषि शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 ने किताबों के उत्पादन, व्यवस्थित आकड़े, उनकी लागत तथा सुलभता पर ध्यान देना सुनिश्चित किया।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 ने परीक्षा में विश्वसनीयता, वैद्यता तथा मूल्यांकन को सुचित्तपूर्ण ढ़ंग से लागू करने पर बल दिया।
- माध्यमिक शिक्षा को सामजिक परिवर्तन का एक प्रमुख शाधन माना तथा इस स्तर पर सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 ने विश्वविद्यालयी शिक्षा में छात्रों की बढ़ती संख्या के सापेक्ष प्रयोगशाला, पुस्तकालय, कर्मचारी तथा अन्य सुविधाओं को सुनिश्चित किया जाये।
- विश्वविद्यालय शिक्षा में तथा प्रौढ़ा शिक्षा में पत्राचार को बढ़ावा दिया जाये।
- प्रौढ़ शिक्षा तथा साक्षरता के क्षेत्र में विशेष कार्य किये जाये।
- विद्यालयों में बालकों हेतु खेलकूद के लिए व्यवस्था तथा असंसाधन उपलब्ध कराये जाये।
- अल्पसंख्यकों की शिक्षा में अभिरुचि बढ़ाने हेतु प्रयत्न किये जाये।
- शैक्षिक ढांचा को 10 + 2 + 3 को समान रूप से पूरे देश में लागू किया जाये।
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