भारतीय शिक्षा सम्बन्धी सरकारी प्रस्ताव 1913 के प्रभावशाली रूप से लागू न होने के कारण 1917 ई० में कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया गया।
कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के अध्यक्ष डा० माइकल सैडलर थे। जोकि लीड्स विश्वविद्यालय (इंग्लैण्ड) के तात्कालीन कुलपति थे।
कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग में डा० आशुतोष मुखर्जी तथा डा० जियाउद्दीन अहमद के रूप में दो भारतीय सदस्य भी सम्मिलित थे।
कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के प्रमुख सुझाव
- विश्वविद्यालय की व्यवस्थाओं को इस प्रकार संगठित किया जाए कि वहां शिक्षण कार्य किया जा सके।
- कुछ चुने हुए कॉलेजो को विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया जाए।
- इंटरमीडिएट की कक्षाओं को विश्वविद्यालय से अलग कर दिया जाए।
- नए इंटरमीडिएट कॉलेज खोले जायें जिसमे कला, विज्ञान, चिकित्सा आदि को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।
- इंटरमीडिएट कॉलेजों में मातृभाषा को शिक्षण का माध्यम बनाया जाए।
- महिला शिक्षा में 15 से 16 वर्ष के बालिकाओं के लिए विद्यालय खोले जायें।
- विश्वविद्यालयों में अलग से महिला परिषद् का गठन किया जाए।
- मुसलमानों के पिछड़ेपन को देखते हुए उन्हें सभी शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध करायी जायें।
भारतीय शिक्षा में राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रभाव
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीयों में व्याप्त असंतोष को समाप्त करने के लिए भारत सचिव मान्टेग्यू तथा जनरल चेम्सफोर्ट के बीच 1919 में एक सहमति बताती है।
- 1919 में हुए जलियावाला बाग़ हत्याकाण्ड के बाद 1920 में गांधी जी असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर देते हैं।
- आन्दोलन के दौरान भारतीय अपनी – अपनी शिक्षा को लेकर निम्न मांग प्रस्तुत करते हैं।
- शिक्षा पर भारतीय नियंत्रण हो।
- मातृभूमि प्रेम का शिक्षण।
- भारतीय शिक्षा पद्धति को पुनः अस्तित्व में लाना।
एनीबेसेन्ट के शिक्षा में सुधार सम्बन्धी प्रयास
- राष्ट्रीय शिक्षा भारतीय के द्वारा नियंत्रित हों।
- शिक्षा में समर्पण ज्ञान तथा नैतिकता का समर्पण हो।
- यह राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुरूप हो तथा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दे।
1920 के आन्दोलन के समय भारत ने कई सारे राष्ट्रीय स्कूल तथा कॉलेज खोले गये।
जैसे – गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ, अलीगढ राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय।
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