द्वैध शासन व्यवस्था के चलते भारतीयों में राजनैतिक, सामाजिक द्वेष व्याप्त था। जिसे शान्त करने के लिए 8 नवम्बर 1927 को जान साइमन की अध्यक्षता में एक समिति भारत आयी जिसे साइमन कमीशन कहा गया।
भारतीयों की शिक्षा का अध्ययन करने हेतु फिलिप हर्टांग की अध्यक्षता में एक कमीटी गठित की गई जिसे हर्टांग कमीटी कहा गया।
सितम्बर 1929 में हर्टांग समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए यह कहा कि प्राथमिक शिक्षा में संख्यात्मक वृद्धि के लिए गुणवत्ता को समाप्त कर दिया गया है। इस समिति ने सबसे पहले अपव्यय और अवरोधन की समस्या का सुझाव दिया।
प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
फैलाव के स्थान पर शिक्षा को सुद्रिण किया जाए।
प्राथमिक शिक्षा की न्यूनतम अवधि 4 वर्ष की जाए।
स्कूल के अवकाश को मौसमी तथा स्थानीय अवस्था के अनुरूप किया जाए।
माध्यमिक शिक्षा के सन्दर्भ में सुझाव
माध्यमिक स्कूलों में पाठ्यक्रम को वैविध्य पूर्ण किया जाए।
माध्यमिक शिक्षा में शिक्षा पूर्ण होने पर छात्रों को औद्योगिक व व्यापारिक पाठ्यक्रमों के विकल्प दिए जाए।
उच्च शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
विश्वविद्यालय में प्रवेश के नियमों को कठोर कर दिया जाए।
विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय तथा प्रयोगशाला की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
विश्वविद्यालयों में अध्यापकों के प्रशिक्षण का प्रबन्ध किया जाए तथा रोजगार कार्यालय समिति गठित की जाए।
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