कर्जन ने 11 मार्च 1904 को भारतीय शिक्षा के सन्दर्भ में सरकारी नीति की घोषणा की जिसमे प्राथमिक, माध्यमिक तथा धार्मिक शिक्षा पर सरकार के मन्तव्य को प्रस्तुत किया।
प्राथमिक शिक्षा को सर्वसुलभ करना राज्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कर्तव्य माना गया।
माध्यमिक शिक्षा में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता, आर्थिक सुविधाएं, उचित पाठ्यक्रम, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि पर बल दिया गया।
सरकारी संस्थाओं में शिक्षा को धर्मनिरपेक्ष किये जाने पर बल दिया।
भारतीय विश्वविद्यालय अध्यादेश 1904
कर्जन ने थामस रैले आयोग की सिफारिश को मानकर 21 मार्च 1904 भारतीय विश्वविद्यालय अध्यादेश पास कराया।
इस अध्यादेश के अनुसार विश्वविद्यालयों ने परीक्षा के अतिरिक्त शिक्षण कार्य भी आरम्भ किया जाना चाहिए।
विश्वविद्यालय संचालन समिति में सदस्यों की संख्या 100 तक सीमित करके इनके कार्यकाल को 5 वर्ष के लिए निश्चित कर दिया गया।
कॉलेजों के सम्बद्धता नियम को और अधिक कठोर कर दिया गया।
विश्वविद्यालय समिति के विचारों को लागू करने का अंतिम अधिकार सरकार के पास था।
अनिवार्य/ निःशुल्क शिक्षा सम्बन्धी गोखले का प्रस्ताव
1906 ई० में बड़ौदा के राजा सियाजीराव गायकवाड़ ने अपने क्षेत्र में शिक्षा को निःशुल्क कर दिया।
गोपाल कृष्ण गोखले ने 19 मार्च 1910 को केन्द्रीय धारा सभा के समक्ष निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सम्बन्धी अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
16 मार्च 1911 को गोखले ने शिक्षा सम्बन्धी अपने प्रसिद्ध विधेयक को प्रस्तुत किया।
गोखले के विधेयक की प्रमुख बातें
भारत में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने का उचित समय आ गया है।
विधेयक के प्रस्ताव केवल नगरपालिकाओं अथवा जिला परिषदों के द्वारा घोषित क्षेत्र में ही लागू होंगे।
प्रारम्भ में यह शिक्षा केवल बालकों के लिए होगी। स्थानीय शासन बालिकाओं के लिए भी व्यवस्था कर सकती है।
प्रस्तावित शिक्षा केवल 6 से 10 वर्ष के बालकों के लिए होगी।
अंग्रेजी अधिकारी हरकोर्ट बटलर ने गोखले के विधेयक के पक्ष में कई तर्क दिए, अन्ततः गोखले विधेयक 13 मतों की अपेक्षा 83 मतों से अस्वीकार कर दिया गया।
सम्पूर्ण—–bal vikas and pedagogy—–पढ़ें