बुद्ध कालीन शिक्षा का उदय बौद्ध धर्म दर्शन से हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य ‘निर्वाण की प्राप्ति’ था। तथा गौण उद्देश्य नैतिक चरित्र का निर्माण करना, बौद्ध धर्म का प्रचार करना, व्यक्तित्व का विकास करना तथा जीवन के लिए तैयार रहना था।
बौद्ध काल में बालक की औपचारिक शिक्षा प्रवज्जा संस्कार से आरम्भ होती थी। प्रवज्जा का शाब्दिक अर्थ ‘बाहर जाना’ होता है।
प्रवज्जा संस्कार 8 वर्ष की आयु में सम्पन्न कराया जाता था।
प्रवज्जा संस्कार के बाद बालक ‘सामनेर’ कहलाता था और उसे मठ में ही रहना पड़ता था।
प्रवज्जा संस्कार के समय बालक से बौद्धत्रयी अथवा शरणत्रयी का उच्चारण कराया जाता था।
- बुद्धं शरणम् गच्छामि।
- धम्मं शरणम् गच्छामि।
- संघम् शरणम् गच्छामि।
सामनेर बालक से ‘दस सिक्खा पदानि’ का वचन लिया जाता था जोकि निम्न हैं –
- अहिंसा का पालन करना।
- शुद्ध आचरण करना।
- सत्य बोलना।
- सादा आहार करना।
- मादक पदार्थों से दूर रहना।
- निन्दा न करना।
- शृंगार न करना।
- नृत्य आदि को न देखना।
- बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण न करना।
- सोना चाँदी या बहुमूल्य धातुओं को दान न लेना।
प्रवज्जा संस्कार के बाद प्रारम्भिक शिक्षा आरम्भ होती थी जोकि 12 वर्षों तक चलती थी।
20 वर्ष की आयु में बालक का उपसम्पदा संस्कार होता था।
उपसम्पदा संस्कार के बाद उच्च शिक्षा आरम्भ होती थी जो 10 वर्षों तक चलती थी।
बौद्ध काल में गुरु और शिष्य के सम्बन्ध मधुर, अच्छे व नैतिकता से पूर्ण थे।
बौद्ध काल में व्याख्यान, प्रश्नोत्तर, वाद – विवाद, भ्रमण आदि शिक्षण विधियाँ प्रयोग में लायी जाती थी।
बौद्ध काल में शिक्षा दो भागों में बटी हुई थी – प्रारम्भिक और उच्च
प्रारम्भिक शिक्षा के अन्तर्गत लिखना – पढ़ना तथा गणित सिखाया जाता था।
उच्च शिक्षा के अन्तर्गत धर्म, दर्शन, इतिहास, भाषा – साहित्य, गणित, ज्योतिष आयुर्वेद, शिल्पकला, चित्रकला तथा सैनिक शिक्षा दी जाती थी।
बौद्ध काल में प्रारम्भिक शिक्षा बौद्ध मठों तथा बौद्ध विहारों में दी जाती थी।
उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय स्थापित किये गए थे जिसमे तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला प्रमुख शिक्षा संस्थाएं थी।
बौद्ध काल में महिला शिक्षा के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया था।
बौद्ध कालीन शिक्षा के गुण
- छात्र तथा अध्यापकों का सरल जीवन।
- शान्ति व अहिंसा का अनुशरण।
- जनमान्य प्राकृत और पालि) की भाषा का समावेश।
बौद्ध कालीन शिक्षा की कमियाँ
- धार्मिक विचारों का अधिक समावेश।
- लौकिक जीवन की उपेक्षा।
- महिला शिक्षा की उपेक्षा।
- बौद्ध विहारों का भ्रष्ट वातावरण।
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