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वंशानुक्रम एवं वातावरण

वंशानुक्रम का अर्थ 

बालक को केवल अपने माता – पिता से ही नहीं बल्कि उनसे पहले पूर्वजों से भी अनेक शारीरिक और मानसिक गुण प्राप्त होते हैं। इसी को हम वंशानुक्रम कहते हैं। वंशानुक्रम को अनुवांशिकता के नाम से भी जानते है।

वंशानुक्रम का अर्थ स्पष्ट करने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने निम्न परिभाषाएँ दी हैं –

बी० एन० झा के अनुसार, “वंशानुक्रम, व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण – योग है।”

जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “माता – पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का संतानों में हस्तान्तरण होना वंशानुक्रम है।”

रूथ बेनडिक्ट के अनुसार, “माता -पिता से संतान में हस्तान्तरित होने वाले लक्षणों को वंशानुक्रम कहते हैं।”

वंशानुक्रम के नियम 

वंशानुक्रम के मुख्यतः तीन नियम हैं –

  1. समानता का नियम
  2. भिन्नता का नियम
  3. प्रत्यागमन का नियम

समानता का नियम 

यह नियम कहता है कि ‘समान, समान को ही जन्म देता है।’ अर्थात माता – पिता के जैसी संतान होना।

जैसे – बुद्धिमान माता – पिता की संताने बुद्धिमान होती हैं तथा बुद्धिहीन माता – पिता की संताने बुद्धिहीन होती हैं।

भिन्नता का नियम 

यह नियम कहता है कि बच्चे अपने माता – पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ न कुछ भिन्न होते हैं। अर्थात माता – पिता से कुछ भिन्न संताने होना।

जैसे- एक ही माता पिता के बच्चे एक दूसरे से समान होते हुए भी रूप, रंग, स्वभाव और बुद्धि में भिन्न होते हैं।

प्रत्यागमन का नियम 

यह नियम कहता है कि बच्चे अपने माता -पिता के विशिष्ट गुणों को त्याग करके सामान्य गुणों को ग्रहण करते हैं। अर्थात माता – पिता से ठीक विपरीत संतान होना।

जैसे – बाबर, अकबर के पुत्र उनसे बहुत निम्न कोटि के थे।

वंशानुक्रम के सिद्धांत 

वंशानुक्रम के सिद्धांत निम्न हैं –

  1. जननद्रव्यों की निरन्तरता का सिद्धांत (प्रतिपादक = वीजमैन)
  2. उपार्जित गुणों के असंचरण का सिद्धांत (प्रतिपादक = वीजमैन)
  3. उपार्जित गुणों के संचरण का सिद्धांत (प्रतिपादक = लैमार्क)
  4. जैव सांख्यिकी का सिद्धांत (प्रतिपादक =गाल्टन)
  5. मेंडल का सिद्धांत (प्रतिपादक = ग्रेगर जान मेंडल)

जननद्रव्यों की निरन्तरता का सिद्धांत 

इस सिद्धांत के प्रतिपादक वीजमैन हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, शरीर का निर्माण करने वाले जननद्रव्य कभी नष्ट नहीं होते हैं। बल्कि इनका पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानान्तरण होता रहता है।

उपार्जित गुणों के असंचरण का सिद्धांत 

इस सिद्धांत के प्रतिपादक वीजमैन है। इस सिद्धांत के अनुसार,  माता – पिता के द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित गुणों का एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तानान्तरण नहीं होता है।

उपार्जित गुणों के संचरण का सिद्धांत 

इस सिद्धांत के प्रतिपादक लैमार्क हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, माता – पिता के द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित गुणों का एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तानान्तरण होता रहता है।

जैसे- जिराफ

जैव सांख्यिकी का सिद्धांत 

इस सिद्धांत के प्रतिपादक गाल्टन हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, बालक में गुणों का हस्तानान्तरण केवल माता – पिता से न होकर पूर्वजों से भी होता है।

मेंडल का सिद्धांत 

इस सिद्धांत के प्रतिपादक ग्रेगर जान मेंडल हैं। मेंडल ने अपना प्रयोग सफ़ेद चूहा और मटर के दानों पर किया था। इस सिद्धांत के अनुसार, एक ही माता – पिता से उत्पन्न संतानों में भिन्नता पाई जाती है।

वातावरण का अर्थ 

वातावरण के लिए पर्यावरण शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। ‘पर्यावरण शब्द’ दो शब्दों से मिलकर बना है। परि  + आवरण।

परि का अर्थ होता है – ‘चारों ओर’

तथा आवरण का अर्थ होता है – ‘ढकने वाला’

अर्थात वातावरण वह वस्तु है जो हमें चारो ओर से ढके हुये है।

वातावरण की परिभाषा मनोवैज्ञानिकों ने निम्न प्रकार दी है –

वुडवर्थ के अनुसार, “वातावरण में वह सब बाह्य तत्व आ जाते हैं जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आरम्भ करने के समय से प्रभावित किया है।”

रॉस के अनुसार, वातावरण, वह बाहरी शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।”

बालक के वातावरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व 

बालक के वातावरण को प्रभावित करने वाले मुख्यतः दो तत्व होते हैं –

  1. पारिवारिक वातावरण (इसे बालक का प्रथम विद्ध्यालय भी कहा जाता है।)
  2. विद्ध्यलयी वातावरण

व्यक्ति का विकास, वंशानुक्रम और वातावरण में सम्बन्ध

व्यक्ति का विकास = वंशानुक्रम X  वातावरण 

याद रखिये – 

प्रश्न 1 .  बुद्धि / व्यक्तित्व / अधिगम को प्रभावित करने वाला कारक है –

  1. वातावरण
  2. वंशानुक्रम
  3. दोनों 
  4. इनमे से कोई नहीं

प्रश्न 2 . बुद्धि / व्यक्तित्व / अधिगम को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है –

  1. वातावरण 
  2. वंशानुक्रम
  3. दोनों 
  4. इनमे से कोई नहीं
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