भक्तिकालीन धारा की प्रेममार्गी शाखा के अग्रगण्य तथा प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म सन् 1467 ई० के लगभग उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के ‘जायस’ नामक स्थान में हुआ था।
ये स्वयं कहते हैं – ‘जायस नगर मोर अस्थानू ।’ जायस के निवासी होने के कारण ही ये जायसी कहलाये। इनका नाम केवल मुहम्मद था तथा ‘मलिक’ जायसी को वंश-परम्परा से प्राप्ति उपाधि थी।
इस प्रकार इनका प्रचलित नाम मलिक मुहम्मद जायसी बना। इनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है जो मामूली जमींदार थे और खेती करते थे।
बाल्यकाल में ही जायसी के माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण शिक्षा का कोई उचित प्रबन्ध न हो सका। 7 वर्ष की आयु में ही चेचक से इनका एक कान और एक आँख नष्ट हो गयी थी। ये काले और कुरूप थे। एक बार बादशाह शेरशाह इन्हें देखकर हँसने लगे। तब जायसी ने कहा- ‘मोहिका हँसेसि, कि कोहरहीं ?’ यानि तू मुझ पर हँसा या उस कुम्हार (ईश्वर) पर? इस पर बादशाह शेरशाह बहुत लज्जित हुए।
जायसी एक गृहस्थ के रूप में भी रहे। इनका विवाह भी हुआ था और पुत्र भी थे। परन्तु पुत्रों की असामयिक मृत्यु से इनके ह्रदय में वैराग्य का जन्म हुआ और ये घर छोड़कर यहां वहां फकीर की भांति घूमने लगे। अमेठी के राजवंश में इनका बड़ा सम्मान था। प्रचलित है कि जीवन के अंतिम दिनों में ये अमेठी से कुछ दूर मंगरा नाम के वन में साधना किया करते थे। जिस जंगल में जायसी रहते थे, उस में एक शिकारी को एक बड़ा बाघ दिखायी पड़ा। शिकारी ने डरकर उस पर गोली चला दी परन्तु पास जाकर देखा तो बाघ के स्थान पर जायसी मरे पड़े थे। इस प्रकार मलिक मुहम्मद जायसी का मृत्युकाल सन् 1542 ई० को बताया जाता है।
रचनाएँ
मलिक मुहम्मद जायसी की 21 रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं। जिसमें पद्मावत, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, अखरावट, कन्हावत, कहरनामा आदि जायसी की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इसमें ‘पद्मावत’ सर्वोत्कृष्ट है और वही जायसी की अक्षय कीर्ति का आधार है।
पद्मावत:- इस में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा का अत्यन्त मार्मिक वर्णन है। एक ओर इतिहास और कल्पना के सुन्दर संयोग से यह एक उत्कृष्ट प्रेम-गाथा है दूसरी ओर इसमें आध्यात्मिक प्रेम की भी अत्यन्त भावमयी अभिव्यंजना है
आखिरी कलाम:- इसमें मृत्यु के बाद प्राणी की दशा का वर्णन है।
चित्ररेखा:- इसमें चन्द्रपुर की राजकुमारी चित्ररेखा तथा कन्नौज के राजकुमार प्रीतम कुँवर के प्रेम की गाथा वर्णित है।
अखरावट:- इसमें वर्णमाला के एक-एक अक्षर को लेकर दर्शन एवं सिद्धांत सम्बन्धी बातें चौपाइयों में कही गयी है।