समस्यात्मक बालक का अर्थ
वे बालक जो कक्षा, विद्ध्यालय, घर में समस्या उत्पन्न करते है तथा सामान्य बालकों से व्यवहार में अधिक भिन्न होते हैं, समस्यात्मक बालक कहलाते हैं।
वैलेन्टाइन के अनुसार, “समस्यात्मक बालक वे होते हैं जिनका व्यवहार अथवा व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है।”
समस्यात्मक बालकों के प्रकार
मनोवैज्ञानिकों ने बालक के विशेष लक्षणों के आधार पर उनके मुख्य लक्षण बताए हैं जो नीचे दिए गये हैं –
- चोरी करने वाले बालक
- झूठ बोलने वाले बालक
- क्रोध व झगड़ा करने वाले बालक
- विद्ध्यालय से भाग जाने वाले बालक
- छोटे बालकों को परेशान करने वाले बालक
- भयभीत रहने वाले बालक
- गृह कार्य न करने वाले बालक
- कक्षा में देर से आने बालक
- अन्य असामाजिक व अनैतिक कार्य करने वाले बालक
समस्यात्मक बालक बनने के कारण
- वंशानुक्रम
- परिवार और वातावरण
- माता – पिता व शिक्षकों का व्यवहार
- शारीरिक दोष
- सांवेगिक दोष
- मूल प्रवृत्ति का दमन
- कठोर अनुशासन
- आवश्यकता पूरी न होने के कारण
- नैतिक शिक्षा का अभाव
समस्या दूर करने के उपाय
ऐसे बालकों को शारीरिक दण्ड न देकर मनोवैज्ञानिक दण्ड देकर इनकी समस्या को दूर किया जा सकता है।
समस्यात्मक बालकों की शिक्षा व्यवस्था
ऐसे बालकों को शिक्षा देने के लिए बालकों को शारीरिक दण्ड न देकर उन्हें मनोवैज्ञानिक उपायों पर देना चाहिए –
- माता – पिता तथा गुरुजनों को सहानुभूति एवं प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
- अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए।
- पुरुस्कार तथा प्रोत्साहन देना चाहिए।
- नैतिक शिक्षा देनी चाहिए।
- शिक्षण – विधि मनोरंजक होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम संतुलित होना चाहिए।
- संगी साथी पर कड़ी नजर रखना चाहिए।
- व्यक्तिगत आवश्यकता की पूर्ति करनी चाहिए।
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