वास्तविक नाम | सुमित्रानन्दन पन्त |
बचपन का नाम | गोसाईं दत्त |
जन्म | 20 मई, सन् 1900 ई० |
जन्म स्थान | उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम |
पिता का नाम | पं० गंगादत्त पन्त |
पुरस्कार | पद्मभूषण, भारतीय ज्ञानपीठ |
मृत्यु | 28 दिसम्बर, सन् 1977 ई० |
सुकुमार भावनाओं के कवि और प्रकृति के चतुर-चितेरे श्री सुमित्रानन्दन पन्त जी का जन्म 20 मई, सन् 1900 ई० को प्रकृति की सुरम्य गोद उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इनके जन्म के छः घंटें के बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया; अतः इनका लालन-पालन इनकी दादी ने किया और इनका नाम गोसाईं दत्त रखा।
इनके पिता का नाम पं० गंगादत्त पन्त था। पन्त जी ने अपनी शिक्षा का प्रारम्भिक चरण अल्मोड़ा में पूरा किया। यहीं पर इन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन रखा।
इसके बाद वाराणसी के जयनारायण हाईस्कूल से स्कूल-लिविंग की परीक्षा उत्तीर्ण की और जुलाई, 1919 ई० में इलाहबाद आये और म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। सन् 1921 ई० महात्मा गाँधी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर इन्होंने बी०ए० की परीक्षा दिए बिना ही कालेज त्याग दिया।
इन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला और हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। प्रकृति की गोद में पालने के कारण इन्होंने अपनी सुकुमार भावना को प्रकृति के चित्रण में व्यक्त किया। इन्होंने प्रगतिशील विचारों की पत्रिका ‘रुपाभा’ का प्रकाशन किया।
सन् 1942 ई० में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ से प्रेरित होकर ‘लोकायन’ नामक संस्कृतिक पीठ की स्थापना की और भारत-भ्रमण हेतु निकल पड़े। सन् 1950 ई० में ये ‘आल इण्डिया रेडियो’ के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए।
28 दिसम्बर, सन् 1977 ई० को इस महान साहित्यकार ने इस संसार से सदैव के लिए विदा ले ली और चिरनिद्रा में लीं हो गये।
पुरस्कार
सन् 1976 ई० में भारत सरकार ने इनकी साहित्य-सेवाओं के लिए ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। इनकी कृति ‘चिदम्बरा’ पर इनको ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला। हिन्दी साहित्य-सेवा के लिए पन्त जी को पद्मभूषण तथा भारतीय ज्ञानपीठ के साथ-साथ साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से सम्मानित किया गया।
कृतियाँ
पन्त जी की कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
1. वीणा
2. ग्रन्थि
3. युगान्त
4. युगवाणी
5. लोकायतन
6. ग्राम्या
7. पल्लव (इसमें वसन्तश्री, परिवर्तन, बादल, निमन्त्रण आदि
श्रेष्ठ कविताएँ संकलित हैं)
8. गुंजन (नौका-विहार इस संकलन की श्रेष्ठ कविता है)
9. अतिमा
10. युगपथ
11. ऋता
12. पल्लविनी
13. स्वर्णकिरण
14. स्वर्णधूलि
15. उत्तरा
16. शिल्पी
17. चिदम्बरा
साहित्य में स्थान
सुन्दर, सुकुमार भावों के चतुर-चितेरे पन्त जी ने खड़ी बोली को ब्रजभाषा जैसा माधुर्य एवं सरसता प्रदान करने का महत्तवपूर्ण कार्य किया है। प्रकृति की गोद में पलने के कारण इन्होंने अपनी सुकुमार भावना को प्रकृति के चित्रण में व्यक्त किया।
पन्त जी गंभीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के सहज आस्थावान कुशल शिल्पी हैं, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय की काल्पना की है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ”पन्त जी हिन्दी कविता के श्रृंगार हैं।”