पूरा नाम | सैयद इब्राहीम ‘रसखान’ |
जन्म | सन् 1558 ई० (संवत् 1615 वि०) |
गुरु का नाम | गोसाई विट्ठलदास |
भाषा | हिन्दी, ब्रज, फ़ारसी |
कृतियाँ | सुजान रसखान, प्रेमवाटिका |
मृत्यु | सन् 1618 ई० (संवत् 1675 वि०) |
रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहीम ‘रसखान’ था। ये कृष्णभक्त मुस्लिम कवि थे। इनके द्वारा रचित ‘प्रेम वाटिका’ ग्रन्थ से यह संकेत प्राप्त होता है कि ये दिल्ली के राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचना-काल जहाँगीर का राज्य-काल था।
रसखान का जन्म सन् 1558 ई० (संवत् 1615 वि०) के लगभग दिल्ली में हुआ था। ‘हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास’ के अनुसार इनका जन्म सन् 1533 ई० में पिहानी, जिला हरदोई (उ०प्र०)में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने दिल्ली में कोई विप्लव होता देखा, जिससे व्यथित होकर ये गोवर्धन चले आये और यहाँ आकर श्रीनाथ की शरणागत हुए।
इनकी रचनाओं से यह प्रमाणित होता है कि ये पहले रसिक-प्रेमी थे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट हुए और कृष्णभक्त बन गये। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने पुष्टिमार्ग में इन्हें दीक्षा दी।
इनका अधिकांश जीवन ब्रजभूमि में व्यतीत हुआ। यही कारण है कि ये कंचन धाम को भी वृन्दावन के करील-कुंजों पर न्यौछावर करने और अपने अगले जन्मों में ब्रज में शरीर धारण करने की कामना करते थे। कृष्णभक्त कवि रसखान की मृत्यु सन् 1618 ई० (संवत् 1675 वि०) के लगभग हुई।
कृतियाँ
रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्रसिद्ध हैं-
1. सुजान रसखान – यह भक्ति और प्रेम-विषयक मुक्तक काव्य है। इसकी रचना कवित्त और सवैया छन्दों में की गयी है। इसमें 139 भावपूर्ण छन्द हैं।
2. प्रेमवाटिका – इसके 25 दोहों में प्रेम के त्यागमय और निष्काम स्वरूप का काव्यात्मक वर्णन है तथा प्रेम का पूर्ण परिपाक हुआ है।
साहित्य में स्थान
रसखान का भक्त-कवियों में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। रसखान को ‘रस का खान’ कहा जाता है। इनके काव्य में श्रृंगार रस तथा भक्ति रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। इनकी भक्ति हृदय की मुक्त साधन है और इनका श्रृंगार वर्णन भावुक ह्रदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। इनके काव्य स्वच्छन्द मन के सहज उद्गार हैं। ये अपने काव्य में भावनाओं की तीव्रता, गहनता और तन्मयता के लिए जितना प्रसिद्ध हैं उतना ही भाषा की मार्मिकता तथा व्यंजन शैली के लिए प्रसिद्ध हैं।