HomeBiographyसूरदास जी का जीवन - परिचय | Surdas Jivani

सूरदास जी का जीवन – परिचय | Surdas Jivani

नामसूरदास
जन्म, जन्मस्थानसन् 1478 ई० (संवत् 1535 वि०)
रुनकता
गुरु का नाममहाप्रभु वल्लभाचार्य
काव्यधारासगुण कृष्णभक्ति काव्यधारा
के प्रतिनिधि कवि
रचनाएँसूरसागर, सूर-सारावली,
साहित्य-लहरी
मृत्युसन् 1583 ई० (संवत् 1640 वि०)

‘अष्टछाप’ के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई० (वैशाख शुक्ल पंचमी, संवत् 1535 वि०) में आगरा-मथुरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् मानते हैं कि सूरदास जी का जन्म दिल्ली के निकट ‘सीही’ ग्राम में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

सूरदास जी जन्मान्ध थे, इस विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। सूरदास की रूचि बचपन से ही भगवद् गीता के गायन में थी। इनसे भक्ति का एक पद सुनकर पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन का भार सौंप दिया। वल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ नाम से आठ कृष्णभक्त कवियों का जो संगठन किया उसमें सूरदास जी को शीर्षस्थ स्थान प्राप्त हुआ।

गऊघाट पर रहकर सूरदास जी जीवन भर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के गायन और पद-रचना में संलग्न रहे।
गोसाईं बिट्ठलनाथ के सामने गोवर्द्धन की तलहटी के पारसोली नामक ग्राम में सन् 1583 ई० (संवत् 1640 वि०) में सूरदास जी का देहावसान हो गया।

जन्मान्ध के विषय में मतभेद

सूरदास जी जन्मान्ध थे या नहीं, इस विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है। इन्होंने कृष्ण की बाल-लीलाओं का, मानव-स्वभाव का एवं प्रकृति का ऐसा सजीव वर्णन किया है, जो प्रत्यक्ष देखे बिना सम्भव नहीं है। इन्होंने स्वयं अपने आप को जन्मान्ध कहा है। ऐसा इन्होंने आत्मग्लानिवश, लाक्षणिक रूप में अथवा ज्ञान-चक्षुओं के अभाव के लिए कहा हो सकता है।

कृतियाँ

महाकवि सूरदास की अग्रलिखित तीन रचनाएँ ही उपलब्ध हैं –

1. सूरसागर – इसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव-गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है। श्रीमदभागवत के आधार पर रचित ‘सूरसागर’ के सवा लाख पदों में से अब लगभग दस हजार पद ही उपलब्ध बताये जाते हैं। सम्पूर्ण ‘सूरसागर’ एक गीतिकाव्य है। इसके पद तन्मयता के साथ गाये जाते हैं तथा यही ग्रंथ सूरदास की कीर्ति का स्तम्भ है।

2. सूर-सारावली – इसमें 1,107 पद हैं। यह ‘सूरसागर’ का सारभाग है। सूरसागर की भाँती इसमें भी भगवान कृष्ण की सगुण भक्ति का वर्णन किया गया है।

3. साहित्य-लहरी – इसमें 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है। इस ग्रन्थ में किसी एक विषय की विवेचना नहीं हुई है, वरन मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गयी है। इसमें कहीं-कहीं पर श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन हुआ है तो एकाध स्थलों पर महाभारत की कथा के अंशों की झलक भी मिलती है।

साहित्य में स्थान

भक्त कवि सूरदास का स्थान हिन्दी-साहित्याकाश में सूर्य के समान है। ये भगवान श्रीकृष्ण सगुण रूप उपासना करते थे अतः ये सगुण कृष्णभक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि कहलाये। सूरदास ने अपनी सभी रचनाओं में भाव-विभोर होकर कृष्ण की बाल-लीलाओं का, प्रकृति तथा मानस-स्वभाव का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है। इसलिए उनकी कविता का भाव-पक्ष प्रबल है। भावों के साथ ही कला-पक्ष का भी सुन्दर संयोग हुआ है।

अष्टछाप के कवियों के नाम 

1. कुंभनदास
2. सूरदास
3. कृष्णदास
4. परमानन्ददास
5. गोविन्दस्वामी
6. छीतस्वामी
7. नंददास
8. चतुर्भुजदास

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