सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय
वास्तविक नाम | सरोजिनी नायडू |
जन्म | 13 फरवरी 1879 ई०, हैदराबाद |
पिता का नाम | अघोर नाथ चट्टोपाध्याय |
माता का नाम | वरदासुन्दरी |
पति का नाम | गोविन्दराजुल नायडू |
मृत्यु | 2 मार्च 1949 |
‘भारत कोकिला’ कही जानेवाली सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 ई० को हैदराबाद में हुआ था। पिता अघोर नाथ चट्टोपाध्याय तथा माता वरदासुन्दरी की कविता लेखन में विशेष रूचि थी। सरोजिनी को अपने माता-पिता से कविता सृजन की प्रेरणा मिली।
ग्यारह वर्ष की उम्र में एक बार सरोजिनी बैठकर गणित का सवाल हल कर रही थी तभी अपने माँ से बोली कि “माँ मैंने एक कविता लिखी है सुनोगी? ” माता ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और पूछा लेकिन तुम तो गणित का प्रश्न हल कर रही थी। हाँ कर रही थी पर वह समझ में नहीं आया। अभी तो एक कविता लिखी है। बेटी के बार-बार कहने पर माँ उनकी कविता सुनाने बैठ गयीं उसी समय सरोजिनी के पिता भी आ गए।
ग्यारह वर्ष की बिटिया के मुख से इतना सुन्दर, सुरीली कविता सुनकर माता-पिता गदगद हो गये।बेटी को शाबाशी देते हुए उन्होंने कहा, “अरे तू गाने वाली चिड़िया जैसी है।“ माता-पिता की बात सच हुई और आगे चल कर सरोजिनी “भारत कोकिला” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
12 साल की उम्र में सरोजिनी ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। इंग्लैण्ड में सरोजिनी का परिचय प्रसिद्ध साहित्यकार एडमंड गॉस से हुआ। सरोजिनी की कविता लिखने में रूचि देखकर उन्होंने भारतीय समाज को ध्यान में रखकर लिखने का सुझाव दिया। इंग्लैण्ड में सरोजिनी के तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए-
- द गोल्डेन थ्रेश होल्ड
- द ब्रोकेन विंग
- द सेप्टर्ड फ्लूट
इंग्लैण्ड से वापस आने पर सरोजिनी का विवाह गोविन्दराजुल नायडू के साथ हुआ। गोविन्दराजुल नायडू हैदराबाद के रहने वाले थे और सेना में डाक्टर थे।
सरोजिनी नायडू की भेंट गाँधी जी से हुयी। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में स्वंम सेवक के रूप में काम किया। गोपाल कृष्ण गोखले सरोजिनी नायडू के अच्छे मित्र थे। वे उस समय भारत को अंग्रेजी सरकार से मुक्त कराने का कार्य कर रहे थे।
सरोजिनी नायडू गोपाल कृष्ण गोखले के कार्य से प्रभावित हुई। उन्होंने कहा, “देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा देखकर कोई भी ईमानदार व्यक्ति बैठकर केवल गीत नहीं गुनगुना सकता। कवयित्री होने की सार्थकता इसी में है कि संकट की घडी में, निराशा और पराजय के क्षणों में आशा का सन्देश दे सकूँ।” सरोजिनी नायडू का ज्यादातर समय राजनीतिक कार्यों में व्यतीत होता था। वे कांग्रेस की प्रवक्ता बन गयी।उन्होंने देश भर में घूम-घूम कर स्वाधीनता का सन्देश फैलाया।
सरोजिनी नायडू ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। उन्होंने अशिक्षा, अज्ञानता,और अन्धविश्वास को दूर करने के लिए लोंगों से निवेदन की। उनका कहना था कि“देश की उन्नति के लिए रुढियों,परम्परों,रीती-रिवाजों के बोझ को उतार फेंकना होगा।”
1925 ई० में जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं तो गाँधी जी ने उत्साह भरे शब्दों में उनका स्वागत किया और कहा “पहली बार एक भारतीय महिला को सबसे बड़ी सौगात मिली है।“ सरोजिनी नायडू अद्भुत वक्ता थीं, जब वे बोलना शुरू करतीं तो लोग उनके धारा प्रवाह भाषण को मन्त्र-मुग्ध होकर सुनते थे। उनके भाषण स्वतंत्रता की चेतना जगाने में जादू का काम करते थे। “नमक कानून तोड़ो आन्दोलन”में गाँधी जी की डांडी यात्रा में उनके साथ थीं। 1942 ई० गाँधी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया। आजादी की लड़ाई में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा, अंततः भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। सरोजिनी नायडू उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनीं।
नारी विकास को ध्यान में रखकर वे अखिल भारतीय महिला परिषद (आल इण्डिया वूमेन कांफ्रेस) की सदस्य बनीं।विजय लक्ष्मी पंडित, कमला देवी चट्टोपाध्याय, लक्ष्मी मेनन, हंसाबेन मेहता आदि महिलायें इस संस्था से जुड़ीं थीं।
30 जनवरी 1948 ई० को गाँधी जी की मुत्यु पर जब देश भर में उदासी छायी थी सरोजिनी नायडू ने श्रद्धांजलि में कहा, “मेरे गुरु, मेरे नेता, मेरे पिता की आत्मा शान्त होकर विश्राम न करे बल्कि उनकी राख गतिमान हो उठे। चन्दन की राख, उनकी अस्थियाँ इस प्रकार जीवंत हो जाये और उत्साह से परिपूर्ण हो जायें की समस्त भारत उनकी मृत्यु के बाद वास्तविक स्वतंत्रता पाकर पुनर्जीवित हो उठे।”
“मेरे पिता विश्राम मत करो, न हमें विश्राम करने दो। हमें अपना वचन पूरा करने की क्षमता दो। हमें अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की शक्ति दो। हम तुम्हारे उत्तराधिकारी हैं, संतान हैं, सेवक हैं, भारत के भाग्य के निर्माता हैं, तुम्हारा जीवनकाल हम पर प्रभावी रहा है।अब तुम मृत्यु के बाद भी हम पर प्रभाव डालते रहो।”
मार्च 1949 को जब वे बीमार थीं, तब उनकी सेवा कर रही नर्स से सरोजिनी नायडू ने गीत सुनाने का आग्रह किया। नर्स का मधुर गीत सुनते-सुनते वे चिरनिद्रा में सो गयीं। 2 मार्च 1949 को भारत कोकिला सदा के लिए मौन हो गयीं।
सरोजिनी नायडू का व्यवहार बहुत सामान्य था। वे राजनीतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के बावजूद भी गीत और चुटकुलों में आनन्द लिया करती थीं। युवा वर्ग की सुविधाओं की ओर उनका ध्यान था। सरोजिनी नायडू का विश्वास था कि सुदृढ़,सुयोग्य युवा पीढ़ी राष्ट्र की अमूल्य निधि है। सरोजिनी नायडू बहुत ही स्नेहमयी थीं प्रकृति से उन्हें विशेष प्रेम था।