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जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय | Jaishankar Prasad

जन्म30 जनवरी सन् 1889 ई० (काशी)
पिता का नामबाबू देवीप्रसाद
नागरिकताभारतीय
भाषा ब्रजभाषा, हिन्दी, खड़ीबोली
मृत्यु14 नवम्बर, सन् 1937 ई०

जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय 

हिन्दी-साहित्य के महान् कवि, नाटककार, कहानीकार एवं निबन्धकार श्री जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी सन् 1889 ई० में काशी के एक वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पूर्वज तम्बाकू का व्यापार करते थे और ये ‘सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध थे। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद काशी के प्रतिष्ठित और धनाढ्य व्यक्ति थे।

प्रसाद जी के बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई तथा स्वाध्याय से ही इन्होने अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू और फारसी आदि भाषाओं का श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त किया और साथ ही वेद, पुराण, इतिहास, दर्शन आदि का भी गहन अध्ययन किया।

प्रसाद जी जब सत्रह वर्ष के थे तब उनके बड़े भाई का भी देहान्त हो गया। परिवार का सारा उत्तरदायित्व प्रसाद जी पर आ गया। प्रसाद जी ने व्यवसाय और परिवार का उत्तरदायित्व संभाला ही था की युवावस्था के पूर्व ही भाभी और एक के बाद दूसरी पत्नी की मृत्यु से इनके ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा।

फलतः वैभव के पालने में झूलता इनका परिवार ऋण के बोझ से दब गया। इनको विषम परिस्थितियों से जीवन-भर संघर्ष करना पड़ा, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और निरन्तर साहित्य-सेवा में लगे रहे। क्रमशः प्रसाद जी का शरीर चिन्ताओं से जर्जर होता गया और अन्ततः ये क्षय रोग से ग्रस्त हो गये। 14 नवम्बर, सन् 1937 ई० को केवल 48 वर्ष की आयु में हिन्दी साहित्याकाश में रिक्तता उत्पन्न करते हुए इन्होनें इस संसार से विदा ली।

कृतियाँ

जयशंकर प्रसाद ने काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास और निबन्धों की रचना की। इनकी प्रमुख कृतियों का विवरण निम्नलिखित है-

नाटक:- प्रसाद जी के नाटकों में भारतीय और पाश्चात्य नाट्य-कला का सुन्दर समन्वय है। इन्होंने नाटकों में राष्ट्र के गौरवमय इतिहास का सजीव वर्णन किया है। इनके प्रमुख नाटक निम्न हैं-

1. स्कन्दगुप्त
2. अजातशत्रु
3. चन्द्रगुप्त
4. विशाख
5. ध्रुवस्वामिनी
6. कल्याणी-परिणय
7. राज्यश्री
8. जनमेजय का नागयज्ञ
9. प्राश्चित
10. एक घूँट
11. सज्जन
12. कामना
13. करुणालय

कहानी-संग्रह:- प्रसाद जी ने कहानियों में मानव-मूल्यों और भावनाओं का काव्यमय चित्रण किया है। इनके कहानियों के संग्रह निम्न हैं-

1. छाया
2. आकाशदीप
3. आँधी
4. प्रतिध्वनि
5. इन्द्रजाल

उपन्यास:- प्रसाद जी ने अपने उपन्यासों में जीवन की वास्तविकता का आदर्शोन्मुख चित्रण किया है। इनके उपन्यास निम्न है-

1. कंकाल
2. तितली
3. इरावती (अपूर्ण)

काव्य:- प्रसाद जी के काव्यों में ‘कामायनी’ श्रेष्ठ छायावादी महाकाव्य है। इनके काव्य निम्न हैं-

1. कामायनी (महाकाव्य)
2. आँसू
3. झरना
4. कनन कुसुम
5. प्रेम पथिक
6. लहर

साहित्य में स्थान

प्रसाद जी छायावादी युग के जनक तथा युग-प्रवर्तक रचनाकार हैं। बहुमुखी प्रतिभा के कारण इन्होंने मौलिक नाटक, श्रेष्ठ कहानियाँ, उत्कृष्ट निबन्ध और उपन्यास लिखकर हिन्दी-साहित्य के कोश की श्रीवृद्धि की। कामायनी के लिए इन्हें मंगलाप्रसाद परितोषित से सम्मानित किया गया। आधुनिक हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रसाद जी का एक विशिष्ट स्थान है।

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