जन्म | मध्य प्रदेश में महू छावनी में 14 अप्रैल 1891 ई० |
पिता का नाम | रामजी |
माता का नाम | भीमाबाई |
पत्नी का नाम | रमाबाई |
मृत्यु | 6 दिसम्बर 1956 |
दलितों का मसीहा, समाज सेवी एवं विधिवेत्ता के रूप में विख्यात डॉ० भीमराव अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश में महू छावनी में 14 अप्रैल 1891 ई० को हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी था जो अंग्रेजी सेना में सूबेदार थे तथा इनकी माता का नाम भीमाबाई था। बचपन में इनकी माँ इन्हें प्यार से ‘भीमा’ कहकर पुकारती थी।
भीमराव की प्रारंभिक शिक्षा दापोली और सातारा में हुई। उन दिनों समाज में अस्पृश्यता का विष बहुत फैला हुआ था। भीमराव महार जाती में जन्मे थे, इसलिए बचपन से ही इन्हें अस्पृश्यता के कारण कष्ट भोगने पड़े। स्कूल में इन्हें अलग बैठना पड़ता और अन्य बालक इन्हें स्पर्श करने से बचते थे। तब बालक भीमराव के मन में सदा एक ही प्रश्न उठता था कि मुझमें ऐसा क्या दोष है, जो सब मुझसे दूर रहते हैं?
सन 1904 ई० में रामजी अपने परिवार को मुम्बई ले गये। यहाँ भीमराव को एलफिंस्टन कालेज में नौवीं कक्षा में भर्ती कराया गया जहाँ से भीमराव ने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इण्टर की पढाई पूरी की। 17 वर्ष की उम्र में इनका विवाह रमाबाई से कर दिया गया। पिता का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने के कारण अब भीमराव के आगे की पढाई का खर्च भी उठाना मुश्किल हो रहा था।
भीमराव की प्रतिभा को पहचानकर बडौदा नरेश सयाजी राव ने उनकी पढाई की लिए छात्रवृत्ति प्रदान की इसके सहारे उन्होंने 1912 में बि०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सयाजी राव ने इन्हें उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजा। न्यूयार्क विश्वविद्यालय से इन्होने 1915 में एम०ए० की डिग्री हासिल की। इसी दौरान भीमराव ने शोध प्रबन्ध भी लिखा। इस शोध प्रबन्ध का शीर्षक था – “भारत के लिए राष्ट्रीय लाभांश- एतिहासिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन” इस शोध प्रबन्ध पर कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने इन्हें “डॉक्टर ऑल फिलासफी” की उपाधि प्रदान की। अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र के अध्ययन के लिए भीमराव लंदन चले गये। इसी बीच सयाजी राव ने इनकी छात्रवृत्ति समाप्त कर दी। भीमराव को विवश होकर स्वदेश लौटना पड़ा, परन्तु उन्होंने मन ही मन संकल्प कर लिया की पढाई के लिए एक बार वे पुनः लंदन जायेंगे। पढाई के दौरान उन्होंने अपने दैनिक खर्चों में कटौती करके अब तक लगभग 2000 पुस्तकें खरीद ली थीं।
महाराष्ट्र में रहकर उन्होंने शाहूजी महाराज की सहायता से 31 जनवरी 1920 से “मूकनायक” नामक अखबार निकालने की शुरुआत की। इस अखबार का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्याप्त जाति प्रथा को समाप्त करना और अस्पृश्यता का नुवरण करना था। 21 मार्च 1920 को भीमराव ने कोल्हापुर में दलितों के सम्मेलन की अध्यक्षता की। सम्मेलन में कोल्हापुर नरेश शाहूजी महाराज ने लोंगो से कहा-“तुम्हें अम्बेडकर के रूप में अपना उद्धारक मिल गया है”
भीमराव अम्बेडकर पैसों का प्रबन्ध करके पुनः 1920 में लंदन गये। वहां वकालत की पढाई पूरी करने के बाद भारत लौट आये। डॉ० भीमराव अम्बेडकर आजीवन विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे। लगातार काम करने से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। इसी बीच 27 मई 1935 ई० को इनकी पत्नी रमाबाई का निधन हो गया।
1936 में डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने “इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी” नाम से एक राजनैतिक दल का गठन किया। 1937 में हुए प्रांतीय चुनाव में अम्बेडकर और उनके कई साथी भारी बहुमत से विजयी हुए जबकि इस चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा ‘हिन्दू महासभा’ जैसे राजनीतिक दल भाग ले रहे थे। डॉ० भीमराव अम्बेडकर को जुलाई 1941 में गणित रक्षा सलाहकार समिति का सदस्य नियुक्त किया गया।
1945 में उन्होंने पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की। इस सोसाइटी ने अपना पहला शिक्षण संस्थान 1946 में सिद्धार्थ कालेज के नाम से खोला। इन्होंने देश की स्वतंत्रता के पश्चात् 4 नवम्बर 1948 को भारतीय संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रस्तुत किया। डॉ० भीमराव अम्बेडकर इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। इस प्रारूप में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान सभा में कई बार पढ़े जाने के बाद अन्ततः 26 नवम्बर 1949 को इस प्रारूप को स्वीकार कर लिया गया।
14 अक्टूबर 1956 को अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। 6 दिसम्बर 1956 को भारतीय क्षितिज का यह सितारा सोया तो फिर नहीं उठा। उनके योगदानों के लिए भारत सरकार ने सन् 1990 में उन्हें मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। भले ही आज डॉ० भीमराव अम्बेडकर हमारे बीच नहीं हैं फिर भी अपने सामाजिक कार्यों और योगदानों के लिए यह देश उन्हें युगों-युगों तक याद रखेगा।