HomeChild Development And Pedagogyसम्प्रेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, महत्व एवं प्रकार

सम्प्रेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, महत्व एवं प्रकार

सम्प्रेषण का अर्थ

सम्प्रेषण शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘कम्यूनीस’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ‘सामान्य’। इसे अंग्रेजी भाषा में ‘Communication’ कहते हैं।

सम्प्रेषण क्रिया के अन्तर्गत प्रेषण क्रिया प्रभावी होता है। यह दो पक्षीय या बहु पक्षीय होता है। सम्प्रेषण की क्रिया में भेजने वाला ‘प्रेषक’ और प्राप्त करने वाला ‘प्राप्तकर्ता’ कहलाता है।

शिक्षक द्वारा अपनी बातों को छात्र तक पहुँचने की प्रक्रिया ही सम्प्रेषण कहलाती है।

सम्प्रेषण की परिभाषा

कीथ के अनुसार “सम्प्रेषण सूचनाओं एवं समझ को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने की क्रिया है।”

सम्प्रेषण की विशेषताएँ एवं महत्व

सम्प्रेषण की मुख्य विशेषताएँ एवं महत्व निम्नलिखित हैं –

  • सम्प्रेषण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।
  • सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है।
  • सम्प्रेषण दो पक्षीय होता है एक संदेश भेजने वाला और दूसरा संदेश ग्रहण करने वाला होता है लेकिन शिक्षण प्रक्रिया में तीन पक्ष होते हैं।
  • सम्प्रेषण की प्रक्रिया में अनुभवों की साझेदारी होती है।
  • सम्प्रेषण एक पारस्परिक सम्बंध स्थापित करने की प्रक्रिया है।
  • सम्प्रेषण में ‘विचार विनिमय’ तथा विचार विमर्श आवश्यक हैं।
  • सम्प्रेषण ‘ज्ञान स्थानान्तरण’ करने की प्रक्रिया है।

सम्प्रेषण की प्रक्रिया एवं तत्व

सम्प्रेषण की प्रक्रिया एवं तत्व नीचे दी गई हैं –

सम्प्रेषण की प्रक्रिया एवं तत्व

प्रेषक

प्रेषक सम्प्रेषण प्रक्रिया का पहला बिन्दु होता है जिसके माध्यम प्रेषक अपने विचारों एवं भावों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाता है।

इस प्रक्रिया में प्रेषक को निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है –

  • उद्देश्य की जानकारी।
  • बालकों का बौद्धिक स्तर।
  • शिक्षण विधि।
  • उचित सहायक सामाग्री।
  • विषयों का सहसम्बन्ध। आदि।

संदेश

इस प्रक्रिया में संदेश एक उद्दीपक की तरह कार्य करता है। जिसका प्रेषक उचित प्रकार से प्रयोग करता है।

शैक्षिक भाषा में संदेश से आशय पाठ्यवस्तु से है।

माध्यम

जिन साधनों की सहायता से ग्राही तक संदेशों को पहुंचाया जाता है, उसे माध्यम कहा जाता है।

वर्तमान समय में सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यम प्रचलित हैं –

जैसे – मोबाइल, रेडियो, टेलीविज़न, आदि।

ग्राही

इस प्रक्रिया में ग्राही की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कक्षा शिक्षण में ग्राही के रूप में छात्र, शिक्षण द्वारा प्रसारित ज्ञान को ग्रहण कर सम्प्रेषण की प्रक्रिया को पूर्ण करता है।

प्रतिपुष्टि

इस प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि या पृष्ठपोषण संदेश प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रदान की जाती है।

सम्प्रेषण के प्रकार

सम्प्रेषण के निम्न प्रकार हैं जो नीचे दिये गए हैं –

सम्प्रेषण के प्रकार

शैक्षिक सम्प्रेषण

शिक्षण के आधार पर सम्प्रेषण को दो भागों में बाँटा गया है –

  1. वैयक्तिक सम्प्रेषण
  2. सामूहिक सम्प्रेषण

वैयक्तिक सम्प्रेषण  

शिक्षक जब एक छात्र को भौतिक रूप से शिक्षण देता है तो ऐसी शिक्षण वैयक्तिक शिक्षण कहलाती है।

अर्थात जब शिक्षक बालक को अलग – अलग शिक्षण देता है तो ऐसी शिक्षण को वैयक्तिक सम्प्रेषण

कहते हैं।

वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण

  • यह विधि सीखने के व्यक्तिगत सिद्धान्त पर आधारित है।
  • इसमे छात्र क्रियाशील रहते हैं।
  • यह विधि पूर्ण रूप से बालकेन्द्रित होता है।
  • इस विधि में बालक के आवश्यकताओं एवं रुचियों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
  • यह विधि मंद बुद्धि बालक एवं प्रखर बुद्धि बालक दोनों के लिए उपयोगी होता है।

वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष

  • सभी छात्रों के लिए व्यक्तिगत शिक्षक की व्यवस्था करना असम्भव कार्य है।
  • यह विधि अत्यन्त खर्चीली है।
  • इस विधि के द्वारा बालकों का सामाजिक विकास नहीं हो पाता है।
  • इस विधि में प्रेरणा, प्रतिस्पर्धा, प्रोत्साहन आदि का अभाव होता है।
  • यह विधि अव्यवहारिक होता है।

सामूहिक सम्प्रेषण

सामूहिक सम्प्रेषण से अभिप्राय कक्षा शिक्षण से है। इस विधि में अलग – अलग मानसिक योग्यता वाले छात्रों के अलग अलग समूह बना लिए जाते हैं। इन समूहों को कक्षा कहते हैं। और इन कक्षाओं में शिक्षक, शिक्षण कार्य करते हैं।

सामूहिक सम्प्रेषण के गुण

  • यह विधि व्यावहारिक होती है।
  • यह विधि कम खर्चीली होती है।
  • इस विधि के द्वारा बालकों में अनुकरण की भावना उत्पन्न होती है।
  • इस विधि में छात्रों के द्वारा सुझाव एवं नवीन ज्ञान प्राप्त होते हैं।
  • यह विधि संकोची एवं लज्जाशील बालकों के लिए अधिक उपयोगी है।

सामूहिक सम्प्रेषण के दोष

  • इस विधि में शिक्षक अधिक सक्रिय होते हैं लेकिन छात्र निष्क्रिय अवस्था में होते हैं।
  • इस विधि मे शिक्षण बालकेन्द्रित न होकर कक्षा केन्द्रित होता है।
  • यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं होता है।
  • इस विधि मे बालकों की वैयक्तिक समस्याओं का ध्यान नहीं रखा जाता है।
  • इस विधि से प्रखर – बुद्धि बालकों का हित नहीं हो पाता है।

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