व्यक्तित्व का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं परीक्षण

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व्यक्तित्व का अर्थ

व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के Personality का हिंदी रूपान्तरण है। Personality शब्द लैटिन  भाषा के Persona शब्द से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है- नकाब, मुखौटा या दिखावा जिसे ग्रीक नायक नाटक करते समय पहनते थे।

हमारे भारतीय परमपराओं में रामलीला का रंगमंच करते हुए रावण का नकाब लगाकर रावण का व्यक्तित्व करते है। प्रारम्भ में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप रंग से ही लगाया जाता था। लेकिन इस व्यक्तित्व को पूर्णतः अवैज्ञानिक घोषित कर दिया गया जिसका कारण यह है कि कई ऐसे व्यक्ति के उदाहरण मिलते है जिनका बाह्य रूप रंग इतना आकर्षण नहीं है लेकिन उनका व्यक्तित्व आकर्षण माना जाता है।

जैसे- महात्मा गाँधी,अब्दुल कलाम,रविंद्र नाथ टैगोर

इस प्रकार मनोविज्ञान के व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के रूप एवं गुणों के समावृष्टि से है।

व्यक्तित्व के कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

वैलेंटाइन– “व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृतियों का योग है।”

गिल्फोर्ड– “व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।”

डेशिल– “व्यक्तित्व व्यक्ति के संगठित व्यवहार का सम्पूर्ण चित्र है।”

आलपोर्ट– “व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनो-शारीरिकगुणों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसका अद्धितीय समायोजन निर्धारित करता है।”

व्यक्तित्व की विशेषताएँ

  1. आत्मचेतना
  2. निरन्तर निर्माण की क्रिया
  3. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ
  4. दृह इच्छा शक्ति

व्यक्तित्व के प्रकार

व्यक्तित्व के प्रकार से तात्पर्य व्यक्तियों के ऐसे वर्ग से है जो व्यक्तित्व गुणों की दृष्टि से एक दूसरे के काफी समान है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा भिन्न-भिन्न ढंगो से वर्गीकृत किया गया है –

क्रेशमर के अनुसार,

शिक्षा मनोवैज्ञानिक क्रेशमर ने अपनी पुस्तक ‘Physique and character’ में शरीर रचना के आधार पर व्यक्तित्व को निम्नलिखित प्रकार बताएँ है –

  • लंबकाय
  • सुडौलकाय
  • गोलकाय
  • आसाधारण

युंग के अनुसार,

शिक्षा मनोवैज्ञानिक युंग ने अपनी पुस्तक Psychological types में मनुष्य के प्रकृति के आधार पर व्यक्तित्व के निम्नलिखित तीन प्रकार बताए है –

अन्तर्मुखी व्यक्तित्व

इस प्रकार के व्यक्तित्व के लोगो का स्वभाव, आदते व गुण बाह्य रूप से दिखायी नहीं देते है।ये आत्मकेंद्रित होते है और सदा अपने में मस्त रहते है।

ऐसे व्यक्ति संकोची,लज्जाशील,एकान्तप्रिय,मितभाषी,जल्दी घबराने वाले,आत्मकेंद्रित तथा आत्मचिंतन करने वाले होते है।

बहिर्मुखी व्यक्तित्व

इस प्रकार के व्यक्तित्व के लोगों की रुचि बाह्य जगत में होती है। ऐसे व्यक्ति व्यवहार में कुशल,चिन्तामुक्त,सामाजिक,आशावादी,साहसी तथा लोकप्रिय प्रवृति के होते है।

उभयमुखी व्यक्तित्व

इस प्रकार के व्यक्ति में अन्तर्मुखी व बहिर्मुखी दोनों प्रकार के गुण पाये जाते है। इस प्रकार के व्यक्ति एक अच्छे लेखक व वक्ता दोनों बनते है।

स्प्रंगेर के अनुसार,

शिक्षा मनोवैज्ञानिक Spranger ने अपनी पुस्तक Types of  Man में व्यक्तित्व के प्रकार के बारे में कुछ इस प्रकार बताया है –

  • सैद्धान्तिक व्यक्तित्व
  • आर्थिक व्यक्तित्व
  • सामाजिक व्यक्तित्व
  • राजनैतिक व्यक्तित्व
  • धार्मिक व्यक्तित्व
  • कलात्मक व्यक्तित्व

व्यक्तित्व परीक्षण

व्यक्तित्व परीक्षणके मापन के लिए अनेक विधियों और परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। जिनमे  से कुछ महत्वपूर्ण विधियाँ निम्नलिखित है –

आत्मनिष्ठ विधि 

इस विधि में व्यक्तित्व का जाँच स्वयं परीक्षक द्वारा किया जाता है इस परीक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है –

  • जीवन इतिहास विधि
  • प्रश्नावली विधि
  • साक्षात्कार विधि
  • आत्मकथन लेखन विधि

वस्तुनिष्ठ विधि

इस विधि में व्यक्ति के बाह्य आचरण का अध्ययन किया जाता है इस परीक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है –

  • नियांत्रित निरीक्षण विधि
  • मापन रेखा विधि
  • शारीरिक परीक्षण विधि

प्रक्षेपी विधि 

यह विधि सभी विधियों में सबसे महत्वपूर्ण है। इस विधि में परीक्षार्थी के सामने ऐसी उत्तेजक परिस्थिति प्रस्तुत की जाती है जिसमे बालक के मन में एकत्त्रित हुई बाते अपने आप  ही बाहर आ जाती है। इस परीक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है –

रोशार्क स्याही-धब्बा परीक्षण

इसे संक्षेप में R.I.T कहते है जिसका पूरा नाम Rorschach Ink Root Test है। इस परीक्षण का निर्माण हर्मन रोशा नामक स्विस वैज्ञानिक ने किया था। इसमें 10-कार्ड होते है। कार्ड संख्या 1,4,5,6,7 पर काले-सफेद रंग होते है। कार्ड संख्या 2 और 3 पर काले,सफेद और लाल रंग होते है। तथा कार्ड संख्या 8,9,10 पर कई रंगो में मसिलक्ष्य बने होते है ये कार्ड एक-एक करके क्रमित रूप से व्यक्ति के सामने प्रस्तुत किये जाते है। और पूछा जाता है कि मसिलक्ष्य में क्या दिखाई दे रहा है।

प्रसांगिग अन्तर्बोध परीक्षण

इसे संक्षेप में T.A.T कहा जाता है। जिसका पूरा नाम Thematic Apperception Test है। इस परीक्षण का निर्माण मॉर्गन तथा मुरे ने 1935 में किया था। इसे कथानक बोध परीक्षण भी कहते है। इसमें 30-चित्रों का प्रयोग किया जाता है। 10-चित्र महिलाओं के लिए,10-चित्र पुरुषों के लिए और 10-चित्र महिलाओं तथा पुरुषों दोनों के लिए किया जाता है।

बालक अन्तर्बोध परीक्षण

इसे संक्षेप में C.A.T कहते है। जिसका पूरा नाम Children Apperception Test है। इस परीक्षण का निर्माण लियोपोल्ड बेलाक ने 1948 में किया था। इसमें 10-चित्र होते है। सभी चित्र किसी न किसी जानवर के बने होते है। जो पुरुषों जैसा व्यवहार करते हुए दिखाई देते है। इसके द्वारा बाल्को के रुचियों और उनके क्रियाओं के बारे में पता चलता है।

वरिष्ठ अन्तर्बोध परीक्षण

इसे संक्षेप में S.A.T कहते है। जिसका पूरा नाम Senior Apperception Test है। इसका निर्माण भी लियोपोल्ड बेलाक ने किया था। यह 50-वर्ष से अधिक आयु  के लिए है इसमें कुल 16-कार्ड होते है।

सामाजिक विकास

जन्म के समय शिशु में सामाजिक विकास शून्य होती है। जैसे जैसे उसका शारीरिक तथा मानसिक विकास होता है वैसे वैसे उसका सामाजीकरण भी होने लगता है। 

सामाजिक विकास से तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है। सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार बालक अपनी आवश्कताओं व रुचियों पर नियन्त्रण करता है। दूसरों के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति अनुभव करता है। तथा अन्य व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करता है। सामाजिक विकास के फलस्वरूप व्यक्ति समाज का एक मान्य सहयोगी,उपयोगी तथा कुशल नागरिक बन जाता है। समाज के मूल्यों विश्वासों तथा आदर्शो में आस्था रखने लगता है। और समाज के जीवन शैली को अपनाने लगता है। सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में उसके समूह मानकों के अनुसार  वास्तविक व्यवहार का विकास होता है। 

सोरेन्सन – “सामाजिक वृद्धि एवं विकास से हमारा तात्पर्य अपने साथ और दूसरो के साथ भली-भाँति चलने की बढ़ती हुई योग्यता से है। “

हरलॉक – “सामाजिक विकास का अर्थ सामाजिक सम्बन्धो में परिपक्वता को प्राप्त करना है।”

सामाजिक विकास की विशेषताएँ

सामाजिक विकास की विशेषताएँ निम्नलिखित है –

सामाजिक विकास के अनुरूप बालक समाज में अनुमोदित सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना सीखता है।

सामाजिक अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार करने की अपेक्षा प्राप्त कर लेता है इसके द्वारा बालक में समाज के नियमों के अनुरूप विकसित हो जाती है।

सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारको का उल्लेख स्किनर और हैरीमैन ने निम्न प्रकार से दिया है –

  • वंशानुक्रम
  • शारीरिक और मानसिक विकास
  • संवेगात्मक विकास
  • विधायलय का वातावरण
  • परिवार
  • अध्यापक
  • खेलकूद

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