बल
बल बाह्य कारक है जो किसी विरामावस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने का प्रयत्न करता है, बल कहलाता हैं।
दाब
किसी तल के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले अभिलम्वत बल को दाब कहते हैं।
P (दाब) = F (बल)/A (एकांक क्षेत्रफल)
- बल के द्वारा पिंड का स्थान बदला जा सकता हैं।
- बल के द्वारा पिंड का वेग कम या ज्यादा किया जा सकता हैं।
- बल के द्वारा पिंड की दिशा को बदला जा सकता हैं।
बल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
सम्पर्क बल
ऐसे बल जो किसी सम्बंधित निकाय पर प्रत्यक्ष रूप से या किसी माध्यम से आरोपित होते हैं, सम्पर्क बल कहलाते हैं।
सम्पर्क बल निम्न प्रकार के होते हैं –
1. आरोपित बल
किसी व्यक्ति अथवा वस्तु द्वारा किसी अन्य वस्तु पर लगने वाला बल आरोपित बल कहलाता हैं।
जैसे – मेज को धक्का देकर स्थान परिवर्तन करना,
किसी पिंड को प्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी उपकरण से स्थान परिवर्तन करना ।
2. लम्बवत बल
किसी स्थिर वस्तु द्वारा अपने सम्पर्क में स्थित वस्तु पर लम्बवत लगाया गया सहायक बल जो उस वस्तु को स्थिरता प्रदान करता हैं, लम्बवत बल कहलाता हैं।
जैसे- मेज पर रखी हुई पुस्तक,
किसी स्थान पर विरामावास्था में रखा हुआ वस्तु ।
3. घर्षण बल
किसी सतह द्वारा आरोपित वह बल जो उस सतह पर गतिमान वस्तु का विरोध करता हैं, घर्षण बल कहलाता हैं।
घर्षण बल एक आवश्यक दोष हैं।
घर्षण बल के लाभ व हानि
- घर्षण बल के कारण मशीने कार्य करते हैं।
- घर्षण बल के कारण मशीने घिसकर खराब हो जाती हैं।
- घर्षण बल के कम या शून्य हो जाने पर मशीने कार्य नहीं कर पाती हैं।
- घर्षण बल के कारण रोड पर वाहनों का चलना आसान होता है।
- घर्षण बल के कारण वाहन के पहिये घिसकर खराब हो जाते हैं।
- घर्षण बल कम या शून्य होने पर वाहनों के चलने में कठिनाई हो जाती है।
घर्षण बल दो प्रकार के होते हैं –
स्थैतिज घर्षण बल – किसी सतह पर स्थित अवस्था में रखी हुई वस्तु और उस सतह के मध्य लगने वाला घर्षण बल स्थैतिज घर्षण बल कहलाता है।
जैसे – मेज पर रखा हुआ पुस्तक
गतिज घर्षण बल – गतिमान वस्तु एवं सम्पर्क सतह के मध्य लगने वाले घर्षण बल को गतिज घर्षण बल कहते हैं।
जैसे – गतिज घर्षण बल दो प्रकार के होते हैं –
लोटनिक घर्षण बल – किसी तल पर लुढ़ककर चलने वाली वस्तु की गति का विरोध करने वाला बल लोटनिक घर्षण बल कहलाता है।
जैसे – वाहनों का चलना, व्यक्तियों का चलना।
सर्पी घर्षण बल – समतल पर फिसलकर चलने वाली वस्तु की गति का विरोध करने वाला बल सर्पी घर्षण बल कहलाता है।
जैसे – बिना पहिये के किसी गाड़ी को जमीन पर खींचना।
4. तनाव बल
तार, रस्सी, केबल, धागा आदि के दोनों विपरीत सिराओं को खींचने पर उसमें लगने वाला बल तनाव बल कहलाता है।
जैसे – खम्भे को तार से खींचना।
5. स्प्रिंग बल
किसी खींची हुई स्प्रिंग द्वारा उससे जुड़ी हुई वस्तु पर लगाये जाने वाला बल स्प्रिंग बल कहलाता है।
जैसे – साइकिल की स्टैण्ड।
गैर सम्पर्क बल
ऐसे बल जो एक पिण्ड के द्वारा किसी अन्य पिण्ड के सम्पर्क में आये बिना उस पर आरोपित किये जाते हैं, गैर सम्पर्क बल कहलाते हैं।
ये निम्न प्रकार के होते हैं –
1. गुरुत्वाकर्षण बल
यह एक आकर्षण बल है जो द्रव्यमान युक्ति सभी पिण्डों के मध्य कार्य करता है।
- सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सौर – मण्डल के सभी ग्रह एक निश्चित कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
- पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सभी वस्तु ऊपर से नीचे आ जाते हैं।
2. गुरुत्व जनित त्वरण (g)
गुरुत्व वह आकर्षण बल है जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचते हैं। इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है। उसे गुरुत्व जनित त्वरण कहते हैं।
g का मान 9.8 मीटर प्रति सेकेण्ड वर्ग होता है।
गुरुत्व जनित त्वरण वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है।
g के मान में परिवर्तन
- पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है।
- पृथ्वी के ध्रुव पर g का मान शून्य होता है।
- विषुवत रेखा पर g का मान न्यूनतम होता है।
- g का मान केंद्र में शून्य होता है।
- पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है।
- जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।
- जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है।
- जब लिफ्ट एकसमान वेग से ऊपर – नीचे गति करती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड के भार में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिण्ड की भांति नीचे गिरती हैं ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार शून्य होता है यही भारहीनता की स्थिति है।
- यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो जाए तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड उसकी फर्श से उठकर छत से जा लगेगा।
3. स्थिर विद्युत बल
दो आवेशित पिण्डो के मध्य लगने वाला बल स्थिर विद्युत बल कहलाता है।
जैसे – कंघे को कपड़े से रगड़ने पर कागज़ के छोटे – छोटे टुकड़ों के समीप ले जाने पर कागज़ के टुकड़े कंघे के नजदीक आ जाते हैं।
4. चुम्बकीय बल
विद्युत आवेशित कणों के मध्य लगने वाला आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल चुम्बकीय बल कहलाता है।
जैसे – दो चुम्बकों के समान शिराओं का एक दूसरे से दूर हटना और विपरीत शिराओं का एक – दूसरे के पास आना।
कार्य के आधार पर बल
कार्य के आधार पर बल दो प्रकार के होते हैं –
ससंजक बल – समान पदार्थों के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं।
जैसे – पानी – पानी
असंजक बल – असमान पदार्थों के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को असंजक बल कहते हैं।
जैसे – पुस्तक या बोर्ड पर लिखना, दीवार को पालिश करना, पानी के द्वारा तखत का भीग जाना आदि।
संतुलन के आधार पर बल
संतुलन के आधार पर बल दो प्रकार के होते हैं –
संतुलित बल – किसी वस्तु पर एक साथ कई बल लगे हों तो उनका परिणामी बल यदि शून्य हो जाता है तो संतुलित बल कहलाता है।
इसमें किया गया कार्य = शून्य होता है।
- संतुलित बल विरामावस्था के वस्तुओं को गतिमान नहीं कर सकते हैं।
- संतुलित बल प्रायः वस्तुओं की आकृति या आकर को बदल देते हैं।
- संतुलित बल गतिमान वस्तुओं की चाल तथा दिशा में परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।
असंतुलित बल – किसी वस्तु पर एक साथ कई बल लग रहे हों किन्तु उनका परिणामी बल शून्य न हो असंतुलित बल कहलाता है।
इसमें किया गया कार्य शून्य नहीं होता है।
- असंतुलित बल विरामावस्था के वस्तुओं को गतिमान कर सकते हैं।
- असंतुलित बल प्रायः वस्तुओं की आकृति या आकार को नहीं बदल पाते हैं।
- असंतुलित बल गतिमान वस्तुओं के चाल तथा दिशा में परिवर्तन कर सकते हैं।