अधिगम वक्र
अधिगम वक्र, अभ्यास द्वारा सीखने की मात्रा, गति और उन्नति की सीमा का ग्राफ पर प्रदर्शन करते है।
अधिगम वक्र के द्वारा छात्रों की बुद्धि – लब्धि के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। जिस छात्रो की मात्रा कम प्रयास में अधिक होती है उसे उच्च बुद्धि लब्धि का माना जाता है।
अधिगम वक्र के प्रकार
अधिगम वक्र के चार प्रकार होते हैं जिनके नाम निम्नवत हैं –
- सरल रेखीय अधिगम वक्र / निष्पादन वक्र / समान उपलब्धि वक्र
- उन्नतोदर वक्र / वर्धमान निष्पादन वक्र / धनात्मक वक्र / सकारात्मक वक्र / बढ़ता हुआ वक्र
- नतोदर वक्र / ऋणात्मक वक्र / नकारात्मक वक्र / घढ़ता हुआ वक्र
- मिश्रित वक्र / सर्पिलाकार वक्र / S – Type Curve
सरल रेखीय अधिगम वक्र / निष्पादन वक्र / समान उपलब्धि वक्र
इस प्रकार के वक्र में, जितना अधिगम में समय लगता है उतनी अधिगम की मात्रा होती है।
जैसे – यदि कोई बालक 4 घंटे में 4 अध्याय याद कर लेता है, तो सरल रेखीय वक्र बनेगा।
लैकमैन ने 1961 में चूहों के अध्ययन में इस तरह के वक्र को पाया था।
उन्नतोदर वक्र / वर्धमान निष्पादन वक्र / धनात्मक वक्र / सकारात्मक वक्र / बढ़ता हुआ वक्र
इस प्रकार के वक्र में, अधिगम में जितना समय लगता है अधिगम की मात्रा उससे अधिक होती है।
जैसे – यदि कोई बालक 2 घंटे में 3 अध्याय याद करता है तो उन्नतोदर वक्र बनेगा।
नतोदर वक्र / ऋणात्मक वक्र / नकारात्मक वक्र / घढ़ता हुआ वक्र
इस प्रकार के वक्र में, अधिगम में जितना समय लगता है अधिगम की मात्रा उससे कम होती है।
जैसे – यदि कोई बालक 4 घंटे में 2 अध्याय ही याद कर पाता है तो नतोदर वक्र बनेगा।
मिश्रित वक्र / सर्पिलाकार वक्र / S – Type Curve
इस प्रकार के वक्र में, सीखने की गति आरम्भ में धीमी और बाद में तीव्र तथा अन्त में पुनः धीमी हो जाती है।
यह धनात्मक तथा ऋणात्मक वक्रों का मिश्रित रूप होता है।
अधिगम के पठार
जब सीखने की गति न तो तेज होती है और न ही धीमी होती है तो वक्र रेखा एक पड़ी रेखा के रूप में चलने लगती है। इसे ही ‘सीखने का पठार’ कहा जाता है।
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक
- अभिप्रेरणा
- विषय वस्तु
- वातावरण
- नवीन ज्ञान
- विधियाँ
- मानसिक विकास
- परिपक्वता
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