मूल प्रवृत्तियों का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार

मूल प्रवृत्ति किसे कहते हैं?

प्राणी जन्म लेने के बाद से ही अपनी आवश्यकताओं एवं वातावरण से प्रभावित होकर किसी न किसी प्रकार का व्यवहार करना आरम्भ कर देता है। इसमे से उसके कुछ व्यवहार जन्मजात और स्वाभाविक शक्तियों के कारण होते हैं। उसका व्यवहार अलग – अलग परिस्थितियों में अलग – अलग होता है। ये जन्मजात शक्तियाँ जो प्राणी मात्र के व्यवहार को परिचालित करती हैं, मूल प्रवृत्तियाँ कहलाती हैं।

मूल – प्रवृत्तियाँ ईंटो के समान है जिसमे मानव का स्वरूप निर्मित होता है।

सर्वप्रथम मूल प्रवृति का सम्प्रत्यय का प्रयोग विलियम जेम्स द्वारा किया गया। लेकिन पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से इस सिद्धांत का प्रतिपादन विलियम मैक्डूगल द्वारा किया गया इसलिए विलियम मैक्डूगल को मूल प्रवृत्ति का जनक कहा जाता है।

मूल प्रवृत्ति की परिभाषाएँ 

मूल – प्रवृत्तियों के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिको ने निम्न परिभाषाएँ दी है –

वैलेनटाइन के आनुसार, “मूल – प्रवृत्ति वह जन्मजात प्रवृत्ति है जो किसी जैविकीय प्रयोजन को निश्चित तरीके से क्रिया करके पूरा करती है।”

वुडवर्थ के अनुसार, “मूल – प्रवृत्ति, क्रिया करने का बिना सीखा हुआ स्वरूप है।”

मूल-प्रवृत्तियों के प्रकार

मूल – प्रवृत्तियों का वर्गीकरण वुडवर्थ, थार्नडाइक, ड्रेवर आदि अनेक वैज्ञानिकों ने किये हैं लेकिन मैक्डूगल द्वारा किया गया मूल – प्रवृत्तियों का वर्गीकरण मौलिक और सर्वमान्य है।

विलियम मैक्डूगल ने अपने पुस्तक Outline Of Psychology में कुल 14 मूल – प्रवृतियों के बारे में बताया है जिनके नाम नीचे दिए गये हैं –

मूल प्रवृत्ति संवेग 
पलायनभय
युयुत्साक्रोध
निवृत्तिघृणा
संतान की प्राप्तिवात्सल्य
शरणागतकरुणा
कामकामुकता
जिज्ञासाआश्चर्य
दैन्यआत्म हीनता
आत्म गौरवआत्म स्वाभिमान
सामूहिकताएकांकीपन
भोजनभूख
स्वामित्वसंग्रहण
रचनात्मकताकृतिभाव
हास्यआमोद

मूल-प्रवृत्तियों का रूप परिवर्तन 

मूल – प्रवृत्तियों में परिवर्तन लाने की चार विधियाँ हैं जिनके नाम नीचे दिए गये हैं –

  1. दमन
  2. विलियन
  3. मार्गान्तरीकरण
  4. शोधन

मूल-प्रवृत्ति की प्रमुख विशेषताएँ 

मूल – प्रव्रत्ति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है –

  • मूल – प्रव्रत्ति अचेतन मन में होती है।
  • मूल – प्रव्रत्ति जन्मजात और स्वाभाविक होती है।
  • मूल – प्रव्रत्ति का रूप, स्वरूप, कार्य सभी प्राणियों में अलग होता है।
  • मूल – प्रव्रत्ति परिवर्तनशील होती है।
  • मूल – प्रव्रत्ति आदतों से भिन्न होती है।
  • मूल – प्रव्रत्ति से व्यवहार क्रिया करने के लिए प्रेरित करती हैं।
  • प्रत्येक मूल – प्रव्रत्ति के तीन पक्ष (भावात्मक, क्रियात्मक और संज्ञानात्मक) होते हैं।

मूल-प्रवृत्तियों का शैक्षिक महत्त्व 

मूल – प्रवृत्तियों का ज्ञान शिक्षकों को निम्न रूप से सहायता प्रदान करता है –

  • बालक की रूचि व रुझान जानने में सहायता।
  • प्रेरणा प्रदान करने में सहायता।
  • बालक के मन को समझने की क्षमता प्रदान करना।
  • आदत निर्माण में सहायता।
  • चरित्र विकास में सहायता।
  • ज्ञानार्जन में सहायता।
  • अनुशासन स्थापित करने में सहायता।

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