HomeChild Development And Pedagogyनिर्देश का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं शिक्षा में महत्त्व

निर्देश का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं शिक्षा में महत्त्व

निर्देश का अर्थ 

निर्देश को अंग्रेजी में ‘Suggestion’ कहते हैं। निर्देश के लिए ‘संकेत और ‘सुझाव’ शब्दों का प्रयोग किया जाता है। यह एक मानसिक क्रिया है। जब कोई बात उसकी अच्छाई या बुराई को समझे बिना स्वीकार कर ली जाती है तब उस क्रिया को निर्देश कहते हैं।

निर्देश द्वारा व्यक्ति दूसरों के विचारों से प्रभावित या वशीभूत हो जाता है और बिना किसी इच्छा के दूसरे के विचारों को ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार के निर्देश में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अचेतन रूप से प्रभावित करता है।

जैसे – कक्षा में अनुशासन स्थापित करने के लिए जब कक्षानायक कहता है कि ”शांत होकर बैठो, प्रधानाचार्य इधर आ रहे हैं।”  तो सभी बालक यह सुनकर शांत हो जाते हैं। इस प्रकार निर्देश द्वारा अधिगम की क्रिया में बहुत सहायता मिलती है।

निर्देश की सफलता निम्न तीन बातों पर निर्भर करती है जो नीचे दी गई हैं –

  1. निर्देश का बार – बार दोहराया जाना।
  2. निर्देश देते समय आवाज में आत्म – विश्वास दिखाई देना।
  3. निर्देश देने वाले का प्रतिष्ठित होना।

निर्देश की महत्वपूर्ण परिभाषाएँ 

निर्देश के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कुछ मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं –

टी० पी० नन के अनुसार, “बिना किसी इच्छा के दूसरे के विचारों को ग्रहण कर लेना निर्देश है।”

मैक्डूगल के अनुसार, “संकेत संदेशवाहक की वह प्रक्रिया है जिसके फलस्वरूप एक व्यक्ति के द्वारा व्यक्त किया हुआ प्रस्ताव उचित तार्किक आधार के बिना भी स्वीकार कर लिया जाता है।

निर्दश के प्रकार 

मनोवैज्ञानिकों ने निर्देश के निम्नलिखित प्रकार बताये हैं –

  • भावाचालक – निर्देश
  • आत्म – निर्देश
  • समूह – निर्देश
  • प्रतिष्ठा – निर्देश
  • विरुद्ध – निर्देश

भावचालक – निर्देश 

भावचालक निर्देश, अचेतन मन में जन्म लेकर व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क में फैली ज्ञान तंत्रिकाओं से होता है।

जैसे – खेल के मैदान में जब ऊँची कूद में कूदने वाला बालक कूदता है तब दर्शक भी उसी समय अपना पैर उठाने लगते हैं।

आत्म -निर्देश 

शिक्षा में आत्म – निर्देश का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमे बालक अपने विचारों और कार्यों का निर्देशन स्वयं करता है।

जैसे – परीक्षा निकट आने पर शिक्षार्थी का यह कहना है कि अब उसे पढ़ने में परिश्रम करना चाहिए, इस प्रकार वह स्वयं से निर्देश ग्रहण करके पढ़ने में मन लगाकर पढ़ना आरम्भ कर देता है।

समूह – निर्देश 

समूह – निर्देश एक समूह द्वारा दिया जाता है। सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति किसी समूह के विचारों के अनुसार आचरण करने लगता है।

जैसे – विद्द्यालय में हड़ताल करना या अनुशासन भंग करना सामूहिक निर्देश का ही परिणाम कहा जा सकता है।

प्रतिष्ठा – निर्देश 

प्रतिष्ठा या बड़े व्यक्तियों द्वारा दिए गए निर्देश को हम शीघ्र ग्रहण कर लेते हैं। बालकों की दृष्टि में इन लोगों की प्रतिष्ठा अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक होती है।

जैसे – बालक, अध्यापक या माता – पिता द्वारा दिए गए निर्देश को बिना किसी तर्क के ग्रहण कर लेते हैं।

विरुद्ध – निर्देश 

इस प्रकार के निर्देश में हम अपनी संकल्प शक्ति को दूसरों के अधीन नहीं करना चाहते और इसी कारण दूसरों के द्वारा दिए गए निर्देश को ठुकरा देते है और उसके विरुद्ध आचरण करते हैं।

जैसे – बालक से किसी कार्य को न करने के लिए आदेश देने पर भी उसका विपरीत करना।

निर्देश ग्रहण – क्षमता के लिए आवश्यक दशाएँ 

निर्देश की दशाओं से तात्पर्य निर्देश देने और निर्देश लेने वाले से है। निर्देश ग्रहण – क्षमता निम्न बातों पर निर्भर करती है –

  • आयु
  • ज्ञान और आत्मविश्वास
  • निर्देश का उद्गम
  • संवेगात्मक दशाएं
  • स्वस्थ मस्तिष्क
  • निर्देश की पुनरावृत्ति

निर्देश ग्रहण – क्षमता की माप 

विद्द्यालयों में बालकों की निर्देश – ग्रहण क्षमता को मापने के लिए आउसेज परीक्षण का प्रयोग किया जाता है।

इस प्रयोग में बालक को एक चित्र दिखाकर उससे कुछ सुझावपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं और बालक उनका उत्तर देते हैं। बालक से पूछे गये प्रश्नों में कुछ प्रश्न चित्र से सम्बन्धित होते हैं तथा कुछ प्रश्न कुछ बातों की ओर संकेत करते हैं।

उदाहरण – बालक को एक अशोक वाटिका का चित्र दिखाया जाता है। और उसे ध्यानपूर्वक देखने के लिए कहा जाता है। और चित्र देखकर उससे कुछ प्रश्न किये जाते हैं।

जैसे – अशोक वृक्ष के नीचे सीता बैठी है ?

क्या वह रो रही है ?

सीता के पास रावण खड़ा है न ?

इसी प्रकार बहुत से प्रश्नों में से कुछ के उत्तर सही होते है। इन प्रश्नों के आधार पर बुद्धि – लब्धि के समान ही निर्देश – लब्धि निकाली जा सकती है। निर्देश – लब्धि को निकालने का सूत्र नीचे दिया गया है –

निर्देश लब्धि  = (स्वीकार किए गए निर्देश / दिए गए निर्देश ) x 100 

जैसे – यदि बालक को 80 निर्देश दिए गए और उसने 24 स्वीकार कर लिया तो उसकी निर्देश – लब्धि क्षमता बताइए।

निर्देश – लब्धि =  (24 / 80) x 100 = 30

निर्देश का शिक्षा में महत्त्व  

निर्देश का शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है। यदि मनोवैज्ञानिक ढंग से निर्देश का शिक्षा में प्रयोग किया जाये तो निम्नलिखित लाभ होते हैं –

  • सामाजिक भावना का विकास
  • चारित्रिक एवं नैतिक भावना का विकास
  • मानसिक विकास
  • अच्छी आदतों का निर्माण
  • शिक्षण में सहायता
  • रुचियों का विकास
  • वातावरण का निर्माण
  • अनुशासन की स्थापना
  • विरुद्ध – निर्देश से बचाव

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