पिछड़े बालक का अर्थ, प्रकार, कारण, निदान व शिक्षा

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पिछड़े बालक का अर्थ 

ऐसे बालक जो अपनी आयु के सामान्य बालक से पढ़ने – लिखने में पीछे रह जाते हैं, पिछड़े बालक कहलाते हैं। 

अर्थात जो बालक – बालिकाएँ कक्षा में किसी तथ्य को बार – बार समझाने पर भी नहीं समझते हैं या औसत बालकों के समान प्रगति नहीं कर सकते है, हम उन्हें पिछड़े बालक कह सकते हैं।

शॉनेल के अनुसार – ” पिछड़ा बालक वह है जो अपनी ही आयु के अन्य बालकों की अपेक्षा उल्लेखनीय शैक्षिक न्यूनता प्रदर्शित करता है। “

पिछड़े बालक के प्रकार 

पिछड़े बालक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  • शारीरिक दोष के कारण पिछड़े बालक 
  • मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक 
  • संवेगात्मक दृष्टि से पिछड़े बालक 
  • शिक्षा के अभाव से पिछड़े बालक 
  • वातावरण और परिस्थितियों के कारण पिछड़े बालक 

शारीरिक दोष के कारण पिछड़े बालक

इस प्रकार के बालको की ज्ञानेन्द्रियाँ ठीक से कार्य नहीं करती हैं।

जैसे – हकलाना या तुतलाना, बहरापन या ऊँचा सुनना, आँख की कमजोरी आदि।

मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक 

इस प्रकार के बालकों की बुद्धि – लब्द्धि 60 से कम मानी जाती है। इसके अन्तर्गत जड़ – बुद्धि, मूढ़, मंदहीन आदि बालक आते हैं।

संवेगात्मक दृष्टि से पिछड़े बालक 

इस प्रकार के बालक वे बालक होते हैं जिन्हें अपने माता – पिता, अभिभावक तथा शिक्षकों से स्नेह तथा सहानुभूति नहीं मिलती है बालक को सब ओर से तिरस्कार मिलता रहता है।

अतः बालक में चिंता, तनाव निराशा तथा उदासीनता आदि के भाव दिखाई देते हैं। ऐसे बालकों का मन पढाई – लिखाई में नहीं लगता है।

शिक्षा के अभाव से पिछड़े बालक

इस प्रकार के बालक वे बालक होते हैं जो सामान्य बुद्धि के होते हुए भी किन्ही कारणों से स्कूल में शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते हैं। अर्थात ऐसे बालकों की ओर कोई भी ध्यान नहीं देता है।

वातावरण और परिस्थितियों के कारण पिछड़े बालक 

इस प्रकार के बालक वे बालक होते हैं जिनके परिवार की आर्थिक परिस्थिति तथा सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण ठीक नहीं होता है।

बालक के पिछड़ेपन का कारण 

मनोवैज्ञानिकों ने बालक के पिछड़ेपन के अनेक कारण बताए हैं जो निम्नलिखित हैं –

  • वंशानुक्रम
  • परिवार का वातावरण
  • परिवार का बड़ा आकार
  • सामाजिक वातावरण
  • शारीरिक दोष व मानसिक दोष
  • स्कूल से सम्बन्धित कारक जैसे – अनुउपयुक्त पाठ्यक्रम, अयोग्य तथा अप्रशिक्षित अध्यापक, अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधि आदि।

बालक के पिछड़ेपन का निदान (पहचान)

यदि हम बालक के पिछड़ेपन का निदान करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले हमें यह पता लगाना पड़ेगा की कौन से बालक पिछड़े हैं।

पिछड़े बालकों का पता लगाने के लिए निम्नलिखित उपायों की सहायता ली जा सकती है –

  • बालकों से गणित, भाषा और सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेनी चाहिए।
  • बालकों के बुद्धि – लब्धि ज्ञात करने चाहिए तथा बुद्धि – लब्धि के अनुसार बालकों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • बालकों का व्यक्तिगत बुद्धि परिक्षण करना चाहिए।
  • अध्यापकों की राय लेनी चाहिए और बालकों के प्रगति – पत्र देखना चाहिए।
  • पिछड़े बालकों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद बालक का व्यक्तिगत इतिहास तैयार करना चाहिए।

इस प्रकार पिछड़े बालकों का निदान हो जाने पर उनके लिए उपचारात्मक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।

पिछड़े हुए बालकों की शिक्षा 

बालक के पिछड़ेपन का सम्बन्ध बालक के परिवार, विद्ध्यालय एवं उसके अपने शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास के कारण से है। इसलिए बालक के पिछड़ेपन के कारणों को दूर करने तथा उसकी शिक्षा की व्यवस्था करने में परिवार, विद्ध्यालय तथा समाज का सहयोग आवश्यक है।

अतः पिछड़े हुए बालकों के उपचार तथा शिक्षा के सम्बन्ध हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  • बालक के शारीरिक दोषों और रोगों का उपचार करना चाहिए।
  • ऐसे बालक जिन्हें कम सुनाई या दिखाई देता है उन्हें कक्षा में आगे बैठाना चाहिए।
  • ऐसे बालक जो गरीब परिवार से हैं उनके लिए निःशुल्क शिक्षा तथा छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
  • विद्ध्यालय और बालकों के परिवार में सहयोग स्थापित करने के अनेक साधनों का प्रयोग करना चाहिए।
  • ऐसे बालकों के लिए विशेष पाठ्यक्रम (सरल एवं बालक के रूचि के अनुसार) का निर्माण होना चाहिए।
  • ऐसे बालकों के लिए विशेष शिक्षण – पद्धतियों का प्रयोग करना चाहिए।
  • बालक के व्यक्तिगत भिन्नता पर ध्यान रखकर शिक्षा देनी चाहिए।
  • ऐसे बालकों के लिए योग्य शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए। आदि।

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