शिक्षण सूत्र का अर्थ
शिक्षण सूत्र के प्रयोग के शिक्षण प्रक्रिया रोचक और प्रभावशाली बनाया जाता है।
फ्राबेल के अनुसार – “ शिक्षण सूत्र का उद्देश्य अधिक से अधिक पाना है न कि अधिक से अधिक खोना। शिक्षण सूत्र बच्चों को अधिक से ग्रहण करने योग्य बनाते हैं।”
शिक्षण सूत्र
शिक्षण सूत्र का प्रभाव शिक्षण पर पड़ता है। शिक्षण सूत्र के प्रयोग से शिक्षण कार्य को उसके लक्ष्य तक पहुचाया जा सकता है।
शिक्षण सूत्र निम्न है –
- सरल से कठिन की ओर
- ज्ञात से अज्ञात की ओर
- स्थूल से सूक्ष्म की ओर
- पूर्ण से अंश की ओर
- अनिश्चित से निश्चित की ओर
- प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
- विशिष्ट से सामान्य की ओर
- विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
- मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर
- अनुभूत से युक्ति – युक्त की ओर
- प्रकृति का अनुशरण
सरल से कठिन की ओर
इस सूत्र के अन्तर्गत बालक को सबसे पहले सरल बातों को समझाना चाहिए फिर उन बातों को समझाना चाहिए जो कठिन होते हैं। इस सूत्र मे पाठ का विभाजन इस प्रकार किया जाता है जिसमे सबसे पहले सरल बातें आती है और फिर बाद मे क्रम से कठिन बातें आती हैं।
जैसे – बालक को हिन्दी शब्दों का ज्ञान कराने से पहले उन्हे अक्षरों का ज्ञान कराना जरूरी होता है।
ज्ञात से अज्ञात की ओर
बालक किसी भी माध्यम के द्वारा जो कुछ सीखता है वही उसका ज्ञात होता है, वह इसी ज्ञात या पूर्व अनुभव के द्वारा नया ज्ञान प्राप्त करता है।
इस सूत्र के अंतर्गत बालक को सबसे पहले उन बातों को बताया जाता है जो बालक जानता है फिर उसी बातों के आधार पर उन उन बातों को बताया जाता है जो बालक नहीं जानता है।
जैसे – बालक को जोड़ बताना है तो गिनती बताते हुए बालक को जोड़ बताना चाहिए।
स्थूल से सूक्ष्म की ओर
इस सूत्र को हर्बर्ट स्पेन्सर ने अपनाने पर विशेष बल दिया है। इस सूत्र के अंतर्गत बालक को मूर्त से अमूर्त के तरफ ले जाया जाता है। इसमे बालक को सबसे पहले स्थूल वस्तुओं (स्थूल वस्तुएं वे वस्तुएं होती हैं जिन्हे हम स्पर्श कर सकते हैं, देख सकते हैं तथा अपनी इंद्रियों के द्वारा महसूस कर सकते हैं।) के बारे मे जानकारी दी जाती है। फिर उन वस्तुओं के बारे मे जानकारी दी जाती जो सूक्ष्म हैं।
जैसे – प्राथमिक स्तर के बालकों को रंग – बिरंगी पेंसिल से गोलियां बनाना, खिलौनों के माध्यम से गिनती या जानवरों का ज्ञान कराना।
पूर्ण से अंश की ओर
इस सूत्र के अंतर्गत बालक को सबसे पहले पूर्ण विषयवस्तु की जानकारी दे दी जाती है। फिर उसके एक – एक अंश की जानकारी दी जाती है।
जैसे – बालक को कम्प्यूटर के जानकारी के लिए सबसे पहले बालक को कम्प्यूटर दिखा दिया जाता है फिर उसके एक – एक अंग की जानकारी दी जाती है।
अनिश्चित से निश्चित की ओर
बालकों के बौद्धिक विकास के क्रम मे बच्चों का मानसिक विकास उनके विचार तथा अनुभवों को स्पष्ट किया जाता है। प्रारम्भ मे बच्चों को निश्चित ज्ञान नहीं होता है। परन्तु बाद मे कई बार गलती करने के बाद वह एक निश्चित बिन्दु पर पहुँच जाता है।
जैसे – किसी देश के प्रमुख स्थल तथा वहाँ की विशिष्टता जो छात्रों को स्पष्ट नहीं होती है परन्तु बाद मे मानचित्रों, चार्ट माडल तथा उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट हो जाते हैं।
प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
इस सूत्र के अन्तर्गत बालक को पहले वस्तु का ज्ञान दिया जाता है जिसमे वर्तमान बातें बताई जाती हैं। बाद मे बालक को उन अप्रत्यक्ष बातों को समझाना आसान हो जाता है जो भूत और भविष्य का निर्धारण करती हैं।
जैसे – सामाजिक विषय मे ग्लोब, माडल या मानचित्र के माध्यम से संसार के विविध भागों के विषय मे जानकारी।
विशिष्ट से सामान्य की ओर
इस सूत्र के अन्तर्गत बालक के समक्ष विशिष्ट उदाहरण के द्वारा सामान्य सिद्धान्त अथवा नियम, निरीक्षण, परीक्षण एवं चिंतन के माध्यम से उत्तर निकलवाये जाते हैं। इसमे बालक रुचि के साथ सीखता है।
विज्ञान, गणित एवं व्याकरण जैसी शिक्षण के लिए यह सूत्र अधिक उपयोगी है।
जैसे – संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया – विशेषण पढ़ाते समय एक से अधिक उदाहरण के माध्यम से परिभाषित करना बताया जाता है।
विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
इस सूत्र मे अनुसार, किसी भी नये तथ्य को सिखाने के लिए उसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करके फिर उन्हे इसके आधार पर संश्लेषित कर एकात्मक रूप देना।
जैसे – संसद का अध्ययन करने के लिए उसके विभिन्न भाग राज्य सभा, लोक सभा, मंत्री परिषद आदि के बारे मे ज्ञात होने पर सम्पूर्ण संसद की कार्य प्रणाली का ज्ञान हो जाता है।
मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर
इस सूत्र के अनुसार बालक को उसके रुचि, आयु एवं जिज्ञासा को ध्यान मे रखकर किसी भी पाठ्यवस्तु का अध्ययन कराया जाता है। जिससे की बालक अपने तार्किक क्षमता का विकास अपनी आयु के अनुसार विस्तारित कर सके।
जैसे – मुगलकालीन स्थापत्य कलाओं को मानचित्र मे दिखाना बाद मे उनकी आयु के अनुसार उसकी विशेषताओं को तार्किक ढंग से बताना।
अनुभूत से युक्ति – युक्त की ओर
बालको की मानसिक क्षमता एवं जिज्ञासा तीव्र होने के कारण वह वस्तुओं को देखकर या अनुभव करके ज्ञान प्राप्त कर लेता है। परंतु बालक को तर्क एवं सिद्ध करने के लिए और अधिक ज्ञान की आवश्यकता होती है जो की बालक के आयु के अनुसार उसे प्राप्त होती रहती है।
जैसे – सूर्योदय या सूर्यास्त को बालक प्रतिदिन देखता है और अनुभव करता है। परंतु इसके कारणो को जानने के लिए तर्कपूर्ण विधि का प्रयोग करके शिक्षक के द्वारा बालक की जिज्ञासाओं को शान्त किया जा सकता है।
प्रकृति का अनुशरण
इस सूत्र के माध्यम से बालक की शिक्षा – दीक्षा प्रकृतिक रूप से उसकी रुचि, मानसिक क्षमता एवं आयु के द्वारा विकसित होती है।
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